सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर अपना फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक का असंवैधानिक बताया। साथ ही इस पर छह महीने के भीतर सरकार को कानून बनाने के लिए कहा है।
इस मामले पर पांच जजों की बेंच ने सुनवाई की। दो जज तीन तलाक के पक्ष में थे वहीं तीन इसके खिलाफ। बहुमत के हिसाब से तीन जजों के फैसले को बेंच का फैसला माना गया। बेंच में जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस कुरिएन जोसेफ, आरएफ नरीमन, यूयू ललित और एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे। इस केस की सुनवाई 11 मई को शुरु हुई थी। जजों ने इस केस में 18 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था।
इससे पहले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया था कि यह एक विचार करने का मुद्दा है कि मुसलमानों में ट्रिपल तलाक जानबूझकर किया जाने वाला मौलिक अधिकार का अभ्यास है, न कि बहुविवाह बनाए जाने वाले अभ्यास का।
यह मुद्दा 16 अक्टूबर, 2015 में शुरु हुआ था जब सुप्रीम कोर्ट की बेंच द्वारा सीजेआई से कहा गया था कि एक समिति को बैठाया गया था जो कि यह जांच कर सके कि तलाक के नाम पर मुस्लिम महिलाओं के बीच भेदभाव किया जा रहा है।
इस समिति ने यह बात उस समय कही थी जब वे हिंदू उत्तराधिकार से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहा था। इसके बाद 5 फरवरी, 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा था कि वे उन याचिकाओं में अपना सहयोग करें जिनमें ट्रिपल तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह जैसी प्रथाओं को चुनौती दी गई है।
इसके बाद इस मामले पर कई सुनवाई हुईं जिनमें ट्रिपल तलाक जैसे मुद्दों को लेकर कोर्ट ने भी गंभीरता दिखाई।
केंद्र सरकार ने भी ट्रिपल तलाक कड़ा विरोध करते हुए कोर्ट से कहा कि ऐसी प्रथाओं को पर एक बार जमीनी स्तर पर विचार करने की आवश्यकता है। 16 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों की सुनवाई के लिए पांच जजों की समिति का गठन किया था।