शादी के बाद महिला के धर्म परिवर्तन पर बहस करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून इस अवधारणा को मंजूरी प्रदान नहीं करता कि अंतर–धार्मिक विवाह के बाद किसी महिला का धर्म उसके पति के धर्म में तब्दील हो जाता है।प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस कानूनी सवाल को देख रही थी कि यदि कोई पारसी महिला किसी दूसरे धर्म के पुरुष से शादी कर लेती है तो क्या उसकी धार्मिक पहचान खत्म हो जाती है।दरअसल, पारसी महिला गुलरोख एम गुप्ता ने गुजरात हाईकोर्ट द्वारा 2010 में बरकरार रखे गए उस पारंपरिक कानून को चुनौती दी थी कि हिन्दू पुरुष से शादी करने वाली पारसी महिला पारसी समुदाय में अपनी धार्मिक पहचान खो देती है और इसलिए वह अपने पिता की मौत की स्थिति में ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ (कब्रगाह)जाने का अधिकार खो देती है।संविधान पीठ ने कहा, ‘ऐसा कोई कानून नहीं है जो यह कहता हो कि महिला किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने के बाद अपनी धार्मिक पहचान खो देती है। इसके अतिरिक्त विशेष विवाह कानून है और अनुमति देता है कि दो व्यक्ति शादी कर सकते हैं तथा अपनी–अपनी धार्मिक पहचान बनाए रख सकते हैं।’