जिला वाराणसी, नगर क्षेत्र पैगम्बरपुर। यहां पर मेहरारू गोरखपुर से आके बनारस के पैगम्बरपुर बाजार में पोखरी के किनारे रहत हईन। ओहीं रह के गावं गावं में जाके सिल बट्टा कूटे के काम करलीन।
इहां करीब दस साल से मेहरारून रहत हईन। इहां करीब बारह झोपड़ी हव। जेमे से पाँच छह परिवार के मेहरारून सिल बट्टा कूट के गुजारा करलीन।
लालती देवी, जमला देवी के कहब हव कि काकरी हमने के त पेट चलावे से मतलब हव। चाहे जाड़ा हो या गर्मी या तो बरसात हर मौसम में जाके हमने सिल बट्टा कूटीला। काम करत के समय डर लगल करला कि कहीं पत्थर छटक के आंख में ना चल जाए। हमनी त कहीं भी रह के कमा खा लेल जाला। हमने के पास एतना पैरूख् आउर ढंग हव कि हमने अपने बच्चन के पेट पाल लेहिला। सिल छोटा बड़ा जहिंसन रही उ हिसाब से पइसा मिल जाला। छोटा रही त छह रूपिया बड़ा रही त बारह या पन्द्रह रूपिया। दिन भर में दस बारह सिल कूट लेइला। सौ दू सौ त कमा लेइला कि घरे के खर्चा आराम से चल जाए।
सिल बट्टा से चलत परिवार
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