अलीगंज की रहने वाली साधना द्विवेदी पेशे से वकील हैं। अपने संघर्षपूर्ण जीवन को याद करते हुए वो कहती हैं कि कोई भी पुरूष महिलाओं को आगे बढ़ते हुए नहीं देखना चाहता। मैंने भी कड़े संघर्ष के साथ अपनी पढ़ाई पूरी कर ये मुकाम पाया है। मेरी मेहनत में मेरे परिवार ने भी बहुत साथ दिया है।
बांदा में रहते हुए मैंने वकालत की। लोग अक्सर मुझसे कहते थे कि वकालत लड़कियों का काम नहीं है। यह सिर्फ आदमी ही कर सकते हैं। अच्छा होगा कि आप टीचर लाइन में जाएं। लेकिन मैं इन दिक्कतों की परवाह किए बगैर अडिग खड़ी रही।
वकालत को मैंने इसलिए चुना ताकि ज़रूरतमंद लोगों की मदद कर सकूं। जो महिलाएं अपने पति द्वारा परेशान की जाती हैं उन्हें न्याय दिला सकूं।
मुझे लगता है कि मैं पुरूषों से अच्छा काम करती हूं लेकिन दिक्कत तब होती है जब घर की रूढि़वादी परिस्थितियों के कारण मैं अपने क्लाइंट्स के पास नहीं पहुंच पाती। यहां महिलाओं पर बंदिशें हैं जबकि पुरूषों पर कोई बंदिशें नहीं होतीं। कई बार मुझे ख्याल आता है कि काश मैं पुरूष होती, तब शायद कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र होती।
आज लोग मुझे मेरे नाम से जानते हैं। मुझे समाज और मेरे विभाग से पूर्ण सहयोग मिला है। मैं चाहती हूं कि मेरे क्लाइंट्स मेरी मजबूरियों के कारण मुझसे दुखी न हों। क्योंकि मुझे जब भी आउट ऑफ स्टेशन जाना पड़ता है तो मेरे परिवार को परेशानी होती है और मैं नहीं जा पाती।