औरतें और लड़कियां चाहे जिस तरह से परिवार को सम्भालें और चलायें पर अभी तक मुखिया तो पुरूष को ही माना जाता है। मां बाप की सम्पत्ति में भी पुरूष का ही हक होता हैं। औरतों को इसका हक मिले इसके लिए गैर सरकारी संगठनों ने कई बार मांग भी की थी। इस पर 22 दिसम्बर 2015 को यह फैसला सुनाया कि हिन्दू समाज में परिवार की सबसे बडी बेटी भी परिवार की मुखिया हो सकती है। दिल्ली हाईकेार्ट ने यह आदेष महिलाओं के हक में किया है। हम महिलायें इस ओदेष का स्वागत करते हैं। इस कानून को 2005 में ही हिन्दू परिवार में बेटी को भी पिता की सम्पति में बराबरी का अधिकार दिया गया था।
जस्टिस नजमी वजरी का कहना है कि परिवार का कर्ता होने से कोई भी महिलाओं को रोक नहीं सकता है। कर्ता मतलब अब वो व्यक्ति जो परिवार की सम्पत्ति से जुडी हुई चीजों के बारे में निर्णय लें एक तरह से जो परिवार का कर्ताधर्ता या मैनेजर माना जाता है। अब महिलायें भी कर्ता मानी जायेंगी। यह कोई नई बात नहीं हैं वैसे तो महिला ही ज्यादातर कमाकर घर परिवार को चलाती है। खैर अच्छा है कि कानून ने भी इस बात को समझा।
मेरा मानना है कि हाईकोर्ट के इस कानून कोे एक ठोस प्रमाण के रूप में अपनाना चाहिए जोकि अभी तक तो माता पिता लडकी को दहेज के रूप में जो भी देते थे लडकी वही पाने के बाद हमेशा के लिए खुश हो जाया करती थी। लेकिन इस कानून के अन्र्तगत एक काफी मजबूत हथियार महिलाओं के हाथ में कानून ने दे दिया है। और आगे उम्मीद की जा सकती है अब आने वाले समय में हर महिला का अपने माता पिता की पैतृक सम्पत्ति में हिस्सा लागू हो गया।
मैं अपने घर की सबसे बडी बेटी हूं। उम्मीद है कि कानून बनने के बाद अधिकार मिलेगा वैसे तो कानून के बाद भी आसानी से अधिकार नही मिलेगा यह मैं अच्छे से जानती हूं। इसके लिए ज्यादातर औरतों को कोर्ट का चक्कर ही लगाना पड़ेगा। एक बात खटकी कि कोर्ट का जो फैसला आया यह बहुत पहले आ जाना चाहिए था। यह अधिकार सिर्फ हिन्दू महिलाओं के लिए है क्यों?
सराहनीय है दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
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