सरकार बच्चन के कुपोषण से बचावे खातिर आउर देश के गरीबी कम करे खातिर कई तरे के योजना चलइले हव। जइसे आंगनवाड़ी चलाके आउर स्कूलन मे दोपहर के खाना बनवाके। आउर गांव वालन के कोटा के दुकान खुलवा के गरीबन के अनाज वितरण करवावत हव। सरकार के इ सब योजना केतना असर करत हव। काहे से कि ज्यादातर स्कूलन में खाना अइसन बनअला कि खाये लायक नाहीं रहत। बल्कि अइसन रहअला कि लइकन फेंक दीहन या भइसी के नादी में डाल दीहन। जब स्कूलन में बढि़या खाना नाहीं बनत या आंगनवाड़ी में अच्छा पोषाहार नाहीं मिलत तो सरकार के इ योजना के पीछे करोड़ो रूपइया खर्चा कइले से का फायदा हव ? अगर सरकार सच मे इ सब योजना के सफल बनावे चाहत हव तो काहे समय समय पे इ योजना के जांच नाहीं करवावत? एतना सब कुछ होले के बावजूद भी इ देखल गयल हव कि लोगन के कूड़ा मे से उठा के खाये के पड़त हव। आखिर का सरकार के योजना एतना सफल हो गयल हव कि लोग के कूड़ा में से उठा के खाना खाये के पड़त हव? का इ सब योजना के लाभ लोगन तक पहुच पावत हव।
बनारस शहर के आबादी लगभग तीस लाख हव जवने में से ज्यादातर लोग के खाना खातिर इधर उधर भट के पड़ अला। बहुत लोग अइसन भी हव जेके कई कई दिन भूखे बितावे के पड़अला। आखिर इ सब के पीछे का कारन हव आउर केकर जवाबदेही हव ? कब तक देश मे खाना खातिर हाहाकर मचल रही? सरकार हरदम खाद्य सुरक्षा खातिर नया नया घोषणा करत हव। लेकिन इ सब योजना के ठोस काहे नाहीं बनावत हव?
सरकार के योजना कागज तक
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