विद्यालय प्रबन्धन समिति बनावब स्कूल के मास्टर के आफत बन गे है। काहे से गांव के कुछ जाने माने लोग आपन मर्जी के समिति बनावै का दबाव बनावत है। उनके कहे मा न चलैं से बवाल करत हैं । या समिति के बारे मा मड़इन का कुछ जानकारी होइगे है। या मारे उंई समिति मा शामिल होय चाहत हैं। पहली दरकी समिति बनावैं मा मास्टरन का कउनौ दिक्कत नहीं भे। काहे से मास्टर आपन मन मौजी से समिति बना लिहिस रहै।
सरकार के सोच के सराहना कीन जा सकत है कि या समिति के जरिया से गांव के लोगन का स्कूल से जोड़ के स्कूल के व्यवस्था सुधारै चाहत है, पै या का व्यवस्था सुधरी? जब समिति ही बनै मा यतना हंगामा होत है, तौ स्कूल के बाकी कामन खातिर कीन जाय वाली मीटिंग, का सफल होई पाई? दूसर बात या है कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष अउर सदस्य स्कूल के मिड्डेमील अउर बाकी व्यवस्थ मा केतना दखल दई पइहैं? बहुत सारे समिति मा शामिल लोग है जिनका या जानकारी निहाय कि समिति के कउन-कउन काम हैं। इं कामन खातिर खासकर समिति मा शामिल मेहरिया केतना समय दई पइहै?
अगर हम पहिले बनी समिति के सदस्यन के बात करी तौ उंई सिर्फ मिड्डेमील देखैं जात रहै। उनका यहै काम के जिम्मेदारी दीन गे रहै। बाकी काम अउर मीटिंग वा स्कूल के जानकारी कतौ नहीं दीन गे। शामिल लोग भी या सब जानब जरूरी नहीं समझिन। सरकार का समिति के काम अउर नियम सिस्टम समझावैं के खातिर लोगन का शामिल करैं से पहिले या बाद लोगन का प्रशिक्षण करैं का चाही।
समिति बनावब मास्टरन खातिर आफत
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