बाबा साहेब अम्बेडकर जिन्होंने समानता का पाठ पढ़ाया, उंच-नीच से ऊपर इंसानियत को माना, दलितों को अपना अधिकार मांगने का रास्ता दिखाया। इन्हीं अम्बेडकर साहेब की देश 127 वीं जयंती मनाने वाला है। क्या आज दलितों को बराबरी का अधिकार मिला है?
बांदा के अमित का कहना है कि पहले और आज भी हमारे साथ छुआछूत का भेदभाव होता है। जो लोग जानते है कि हम दलित जाति के है तो हमें दूर से सामान देते है और चाय पीने पर कहते है कि अपनी गिलास खुद धुल के रखो। लोग बिचकते हुए कहते है कि ये लोग गंदा काम करते हैं। बचपन से जो काम चला आ रहा है हम भी वही काम करते हैं।कुशीनगर जिले में मुख्यमंत्री के आने पर वहां के अधिकारियों ने दलितों को तेल,साबुन,सेंट और शैम्पू बंटवाया था और कहा था कि अच्छे से नहा-धोकर आना।
इसके बारे में वहां की महिलाओं का कहना है कि जब अधिकारी ही छुआछूत मानेगें तो और लोग तो मानेगें ही। ये छुआछूत कभी खत्म नहीं होगा। जो सरकार सबको सामान रूप से नहीं देखती, उसको अपने पद में बने रहने का अधिकार नहीं हैं।