चित्रकूट अउर बांदा जिला मा छुट्टी के समय भी मिड्डेमील बनै का नियम हवै,पै खाना बनावै वाली रसोइन का समय से मानदेय न मिलै के कारन उनका घर का खर्चा चलावै मा बहुतै समस्यन का सामना करै का परत हवै। एक कइती सरकार से रसोइन का मा़त्र एक महीना मा एक हजार रुपिया का मानदेय दीन जात हवै। अगर देखा जाये तौ येत्ती महंगाई मा एक हजार मा कउनौ भी मड़ई का कइ सकत हवै। दूसर बात रसोइयन का स्कूल मा खाना बनावैं मा पूर दिन लाग जात हवै। यहिसे उनका अउर कउनौ काम करै का समय भी नहीं मिल पावत हवै। यहिसे उंई अपने परिवार वालेन के खाना खर्चा खातिर एक एक रुपिया का तरसत हवै। एक हजार मानदेय उनका समय से नहीं दीन जात हवै। का सरकार के लगे रसोइयन का एक हजार रुपिया दें खातिर नहीं रहत आय?
जबैकि या बात भी देखै का मिलत हवै कि जउन करमचारिन अउर अधिकारिन का ज्यादा मानदेय मिलै के बादौ उनका हर महीना समय से मानदेय दीन जात हवै। आखिर सरकार उनके साथै इनतान काहे करत हवै? का सरकार के लगे उनके खातिर रुपिया के कमी आग हवै। या फेर उनके मजबूरी अउर गरीबी समझ के उनके साथै इनतान का खिलवाड़ करत हवै। आखिर मजबूर अउर बेसहारा लोगन का समय से मानदेय न दें मा का सरकार के लगे ज्यादा रुपिया इकट्ठा होइ जई? यहिके खातिर जरुरत हवै कि सरकार रसोइयन का समय से मानदेय दें के कोशिश करै जेहिसे उनका समस्या से बचावा जा सकत हवै? यहिके खातिर सरकार उनके ऊपर कउनौ एहसान नहीं करी?
समस्या जस के तस,शासन कबै लेइ सुध
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