इ आलू केतने रूपिया किलो हव? तीस रूप्या आउर परवर कइसे हव? 15 रूपया पाव। केवल आलू दे दा। कुछ अहिसहीं सुने के पड़त हव ए समय हर सब्जी के दुकान पर। एक तो नवतात्र के त्यौहार उपर से एतना महंगाई। एक गरीब आदमी जेतना कमाला अगर ओतने में ठीक से सब्जी खरीदी त ओकर आधा से ज्यादा पइसा सब्जी खरीदे में खत्म हो जाई। सब्जी गरीब लोग के पेट भरे के सहारा हव। अगर सब्जी एतना मंहगा रही त गरीब का खइयन।
पाण्डेयपुर चैराहे पर सब्जी के दुकान लगावे वाले के कहब हव कि पहिले तेज धूप से सब्जी सूख गएल पानी ना मिले से। फिर ओकरे जवन बचल रहल उ बाढ़ में बह गएल। एही से सब्जी के दाम एतना मंहगा हव। सब्जी के दाम महंगा होवे से गरीब के दाल रोटी से पेट भरे के पड़त हव। अगर एही हाल रही त गरीब के शरीर सेहत पर का असर पड़ी
गंाव में आदमी दिन भर मेहनत कइले के बाद 100 रूपया कमाला। उ आतने में सब्जी खरीदी कि आपन घर परिवार चलाई। जगदीषपुर के दुर्गावती, प्यारी देवी, रामा देवी, मनराज इ लोगन के कहब हव कि एक त एतना महगंाई पहिले से हव। दषहरा के त्यौहार, उपर से सब्जी के बढ़ल दाम हमने के त समझ में नाहीं आवत हव कि हमने त्यौहार मनाई कि पेट चलाई। अगर सब्जी जइसन खाए वाला चीज के एही हाल रही त गरीब मजदूर के पेट कइसे भरी।
सब्जी के दाम बिगाड़त त्यौहार के रंग
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