‘वॉटर एड इंडिया’ के एक सर्वे से ये बात सामने आई कि देश में केवल एक तिहाई घरों तक शौचालय की पहुंच है, जबकि 64 ऐसे परिवार हैं जहां कोई न कोई सदस्य अब भी खुले में शौच करता है। ‘वॉटर एड इंडिया’ की प्रबंधक नीति अरुंदती मुरलीधरन कहती हैं कि शौचालय होने से ही कोई उसका इस्तेमाल करें ये जरुरी नहीं है। शौचालयों का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए हमें उन परेशानियों को पहचानना पड़ेगा, जो इसका इस्तेमाल करने से लोगों को रोकती हैं। शौचालयों का प्रयोग नहीं होने का एक बड़ा कारण उसका रखरखाव और पानी की उपलब्धता की कमी भी है, इसलिए शौचालय को सिर्फ स्वच्छता से अलग भी जाना होगा।
कई जिलों में खुले में शौच जाना जारी है। इसके दो कारण हैं- ये लोगों के व्यवहार में है और खराब शौचालय सुविधाएं दी जा रही हैं। अभी भी हम साबुन से हाथ धोने के मामले में पीछे हैं, जो स्वच्छता का मुख्य मानक है। हाथ नहीं धोने से कई कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस तरह से बीमारी का एक चक्र की शुरुआत हो जाती है।
वहीं विद्यालयों में शौचालयों की स्थिति कुछ इस तरह थी। शौचालय-छात्र अनुपात स्वच्छ विद्यालय द्वारा प्रस्तावित 40 छात्रों के लिए एक शौचालय इकाई के आदर्श के नीचे है – 76 लड़कों के लिए एक कार्यात्मक शौचालय और और 66 लड़कियों के लिए एक कार्यात्मक शौचालय। 39 फीसदी स्कूलों में, शौचालयों पर ताला लगाया गया था। साक्षात्कार किए गए करीब 15 फीसदी छात्रों ने बताया कि स्कूल के घंटों के दौरान उन्होंने स्कूल के शौचालयों का इस्तेमाल कभी नहीं किया। उन्होंने बताया कि वे खुले में शौच जाते हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन स्कूलों में अपर्याप्त था। 45 फीसदी शिक्षकों ने बताया कि कचरा या तो खेतों में जलाया जाता है या फिर जमा किया जाता है, जबकि 32 फीसदी बताया कि स्कूल परिसर के बाहर कचरा फेंक दिया गया था। लेख साभार: इंडियास्पेंड