सरस्वती विद्या मंदिर, इंटर कॉलेज बांदा से पढ़ी शोभा एक क्रिकेटर हैं। अपने संघर्ष के बारे में बताते हुए वे कहती हैं, ‘‘मैं पहले स्कूल की तरफ से ही खेला करती थी। इसी दौरान मंैने जैवलिन थ्रो में नेशनल खेला। ऐसा करते हुए जब मैं स्कूल पर ध्यान नहीं दे पाती थी तब मुझे अपनी टीचर की डांट सुननी पड़ती थी। लेकिन जब मेरा चयन हो गया तब उन्होंने मुझसे कहा कि मैं सिर्फ क्रिकेट पर ही ध्यान दूं।
सेलेक्शन के लिए अंडर-19 के दो मैच हुए और दोनों ही मैचों में मेरा प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा जिसके बाद टीचर ने कहा कि अगर इस तरह से खेलोगी तो सेलेक्शन नहीं हो पाएगा। तब तीसरे मैच में मैंने 84 रन बनाए और नॉट आउट रही। मेरी टीचर इससे बहुत खुश हुईं। उसके अगले ही दिन टॉप 15 में मेरा नाम था। यह मेरे लिए बहुत खुशी की बात थी।
अब अच्छा लगता है कि मेरा नाम हो गया है। ये सुन कर बहुत अच्छा लगता है कि लोग मेरे माता-पिता का नाम लेकर बोलते हैं कि यह उनकी बेटी है जो क्रिकेट खेलती हैं।
मैं सचिन तेंदुलकर को अपना आदर्श मानती हूं। चाहती हूं कि मैं भविष्य में उनके जैसा खेल पाऊं।
इस सब की शुरुआत मुश्किल थी। सभी टोका करते थे कि ये लड़की हो कर लड़कों वाला खेल क्यों खेलती है। लेकिन मेरा नाम होने के बाद अब सभी मेरा साथ देते हैं।
पहले लोग पहचान नहीं पाते थे कि मैं लड़का हूं या लड़की। अभी भी कुछ लोग मेरे पहनावे को देखकर चैंक जाते हैं। गांव में, ट्रेन में, लोग मुझे ‘भाई साहब’ कहकर बुलाते हैं।
हमारी कोच मुझे महिला जयवर्धने कह कर बुलाती हैं। पहले अजीब लगता था पर अब सब अच्छा लगता है।
अब तो मैं खेलने के लिए बाहर भी जाने लगी हूं। जो लड़कियां संकोच और लोगों के डर की वजह से अपने सपने पूरे नहीं कर पातीं, मैं उनसे यह कहना चाहती हूं कि खेलना अच्छा लगता है तो खेलो। जो सपना है वो पूरा करो। न ये खेल खराब है न कोई भी काम खराब होता है।’’