औरतन के साथै होय वाली हिंसा के बात जबै भी समाज मा होत है तौ हमेषा यहै कहा जात है कि अगर औरत पढ़ लिख के षिक्षित होई जइहैं तौ शायद महिला हिंसा कम होई सकत है। बसन, रेलगाडि़यन, मीडिया, बुद्धजीविनय के बहस अउर हेंया तक सरकार भी या बात का ढिंढ़ोरा पीटत है कि औरनतन का आपन हक अउर अधिकार जानैं अउर पावैं खातिर उनकर षिक्षित होब बहुतै जरूरी है। पर अगर या बात के तुलना प्रीति गुप्ता के घटना से कीन जाय तौ सबै बात झूठ अउर बनावटी लागत हैं। प्रीति गुप्ता एम.बी.ए. पढ़ी है। दिल्ली मा नौकरी करत रहै। शादी करैं अउर ससुराल ही जिंदगी है के आड़ मा बना बनावा कैरियर से खिलवाड़ होइगा। या मामला सिर्फ अकेले प्रीती गुप्ता का निहाय। इनतान के मामला घटत ही रहत हैं। इनतान के मामला मा बहुतै कम बात भी होत है। या मारे इनतान के मामला दब के रहि जात हैं।
दहेज कम मिलैं के आड़ से षिक्षित होय या अषिक्षित लड़की का इं मामलन मा सिर्फ दुख ही दीन जात है। औरतन का महिला हिंसा से बचावैं खातिर देश के संविधान मा नियम कानून बनाये गे हैं। कानून के नजर मा षिक्षित हो या अषिक्षित सब बराबर हैं। कानून षिक्षित अषिक्षित देख के नहीं बनावा गा फिर सरकार अउर समुदाय या बात काहे करत है कि हिंसा षिक्षित परिवार अउर षिक्षित औरत के साथै कम होत है।
शिक्षित होय भर से का रूक सकत है हिंसा
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