शादियों का मौसम हो और मंडप ही फीका दिखे, ऐसा कैसे हो सकता है। दूल्हा- दुल्हन के बाद मंडप पर ही तो लोगों की नजरें टिकी रहती हैं. शादी हर किसी की ज़िन्दगी का सबसे खुबसूरत पल होता है और उसकी रस्में भी, ऐसे में शादी के फेरों में मंडप का सुन्दर होना जरुरी हो जाता है।
धार्मिक परम्परा के अनुसार शादी की रस्मों की शुरुआत मंडप से होती है। माना जाता है कि मंडप ही वो स्थान होता है जहाँ वर-वधू एक नए बंधन में बंधते हैं। ऐसे ही मंडपों में चार-चाँद लगाने का काम करते हैं झाँसी जिले के घास मंडी के लोग…
मंडप सजाने का काम करने वाले राजेश कहते हैं कि हम रानी झाँसी बाई के जमाने से ये काम करते आ रहे हैं, बहुत पुराना इतिहास है हमारा। हम शुरुआत से लेकर अंत तक का सारा काम करते हैं। शादियों में जितनी भी तस्वीरें मंडप में लगायी जाती हैं या उसको आकर्षक बनाने के लिए जो भी किया जाता है वो हम ही करते हैं.
रीना ने बताया कि इस काम के लिए वो लकड़ी, रंग, कागज एवं अन्य सजावटी चींजों का इस्तेमाल करती हैं।
भग्गो देवी ने बताया कि मौसम आते ही 10-20 बना लेते हैं एक दिन में, एक मंडप 150 से शुरू होता है और उससे भी बड़े बड़े और महंगे होते हैं।
वैसे तो अक्सर लोग शादियों के लिए बड़े-बड़े पंडाल बनवाते हैं या शादी के लिए हॉल बुक करते हैं ताकि शानों-शौकत में कमी न रह जाए और इसी चमक में इन मंडपों की चमक फीकी पड़ती जा रही है। इन मेहनतकश लोगों की जिंदगी खोती जा रही है।
इससे पहले लोग दीवारों पर रंग करवाते थे, चित्र बनवाते थे और दूल्हा-दुल्हन का नाम लिख कर इसे यादगार बनाने का काम करवाते थे लेकिन वो अब नहीं होता जिसकी वजह से इन कलाकारों की कला खत्म होती जा रही है और साथ ही उनका रोजगार भी उनसे छीन रहा है।
लेकिन वहीँ, राजेश ने बताया कि बुंदेलखंड का मंडप और झाँसी की कला इतनी मशहूर है कि लोग यहाँ दूर दूर से मंडप लेने आते हैं।
रिपोर्टर: सफीना
Published on Jun 3, 2018