अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर 42 वर्षीय कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन बड़े ठाठ से संसद के परिसर में एक नीला कुर्ता पहने और नारंगी रंग की हार्ले डेविडसन बाईक से दाखिल हुई। रंजन इस रूप में एक सशक्त महिला का आधुनिक चेहरा नजर आ रही थीं। लेकिन लोक सभा में इन्ही महिलाओं को श्रद्धांजलि देकर महिला आरक्षण बिल को नजरअंदाज कर दिया।
पिछले 18 सालों से लोक सभा में जब-जब महिला आरक्षण की बात शुरू की जाती है तब किसी ड्रामे के साथ यह मुद्दा टाल दिया जाता है। वर्ष 2010 में कांग्रेस ने राज्यसभा में इस बिल को पेश किया। लेकिन निचली सदन ने उसे पास करने से मना कर दिया।इस महिला आरक्षण बिल में महिलाओं के लिए संसद और राज्य विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटों पर कोटा रखा जाएगा। महिलाओं को प्रतिनिधित्व करने का यह 12 कोटा वर्तमान लोक सभा और राज्य सभा दोनों में विचारशील मुद्दा है। हर बार इस बिल को लेकर सवाल किए जाते है। लेकिन यह दोहरी मानसिकता के प्रतिक हैं क्योंकि एक तरफ तो यह सवाल उठाने वाले, जाट आरक्षण संबंधी बिल को पारित करने की बात करते हैं वही महिला आरक्षण के बारे में सोचने से पहले ही हंगामा करते हैं। महिला आरक्षण बिल के प्रति आपत्तियों के बावजूद, इसके पक्ष में कई बातें हैं जो इसे अनिवार्य रूप से लागू करने को बाध्य करती हैं। जैसे उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में महिला आरक्षण है, जिससे महिलाओं की राजनितिक भागीदारी मजबूत हुई है। उत्तर प्रदेश में 2015 के पंचायत चुनाव में 44 फीसदी महिला उम्मीदवारों ने आरक्षण से भी अधिक संख्या में जाकर चुनाव जीता। इन सभी बहसों का मुख्य कारण यही है कि किसी भी तरह से महिलाएं संसद में न पहुँच सकें। लेकिन कब तक राजनीति में महिलाओं के प्रवेश को रोका जाएगा? यह सही समय है जब महिला आरक्षण बिल लागू होना चाहिए। बस, सवाल यह है कि इसकी शुरुआत कौन करता है।