फ्रांस की पत्रिका चार्ली हेब्दो के दफ्तर में हुए हमले ने मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी पर लगाम लगाने के मुद्दे को गरमा दिया है। पत्रिका के दस पत्रकारों की हत्या केवल इसलिए कर दी गई क्योंकि उन्होंने पैगंबर मोहम्मद साहब के कार्टून बनाकर छापे थे। धर्म की कट्टरता पर मजाकिया तरीके से सवाल उठाए थे।
ऐसा नहीं है कि इस पत्रिका ने केवल मुस्लिम धर्म को ही हमेशा निशाना बनाया हो । ईसाइयों के धर्म गुरु पोप के भी कई कार्टून छापे। दुनियाभर के राजनेताओं जिनमें फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी, उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग – इनके भी कार्टून छापे, जिन पर बहुत बहस हुई। यह बहस विचारों तक सीमित थी। सहमति और असहमति की बहस थी। लेकिन इससे पहले भी पैगंबर साहब का एक कार्टून छापने पर पत्रिका के दफ्तर में हमला किया गया था।
कुछ दिन पहले ही भारत में आई फिल्म पी के को लेकर हिंदू धार्मिक संगठनों ने सिनेमा हालों में तोड़-फोड़ की थी। चाहे फिल्म का विरोध हो या कार्टून का, या किसी किताब का, सभी मामले जनसंचार की स्वतंत्रता को सीमित करने की हिंसक कोशिश से जुड़े हुए हैं। हम किसी विचार या राय से सहमत या असहमत हो सकते हैं। अगर हमें लगता है कि किसी तरह से किसी धर्म या समुदाय को किसी लेख ने, किसी कार्टून ने, किसी फिल्म के किसी विषय ने आहत किया है, तो हमें विरोध दर्ज कराना चाहिए। किसी भी रूप में विरोध का तरीका हिंसक नहीं हो सकता। फिर हत्या तो गंभीर अपराध है।
विरोध के हिंसक तरीकों के खिलाफ
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