दो विज्ञान विषय की पत्रकार आशिमा डोगरा और नन्दिता जयराज ने अपने एक प्रोजेक्ट ‘द लाइफ ऑफ साइंस’में यह पता लगाया है कि भारतीय महिला वैज्ञानिकों की कमी बड़ी मात्रा में क्यूँ है। उन्होंने इस प्रोजेक्ट के लिए आठ महीनों में देश के सभी वैज्ञानिक संस्थानों में 50 साक्षात्कार किए, और जो बातें इस प्रोजेक्ट में निकलकर आईं वो इस प्रकार हैं-
आज भी देश में विज्ञान के क्षेत्र में लिंग अनुपात असंतोषजनक है। आप देख सकते हैं कि कितनी महिलाओं को वैज्ञानिक के तौर पर राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं और देश के बडे़ वैज्ञानिक संस्थानों के ऊंचे पद पर महिलाएं नहीं हैं। इस तरह की लिंग आधारित कमी युवा पीड़ी को भी इस क्षेत्र में बढ़ने से रोकती हैं।
देश के प्रमुख संस्थानों में से एक अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला में काम करने वाली महिला वैज्ञानिकों की संख्या 70 वैज्ञानिकों पर सिर्फ 3 है, साथ ही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के 17 संकायों में केवल दो ही महिला डीन हैं। इस समस्या की शुरुआत वैज्ञानिक विश्वविद्यालयों की कक्षाओं से होती है, जहां लड़कियों की संख्या बहुत कम होती है, जिसके कारण वे कक्षा में हिचक के कारण प्रश्न भी नहीं पूछती हैं।
देखने में ये भी आया है कि अधिकतर महिला वैज्ञानिक अपने वैज्ञानिक पति के साथ साझेदार हैं, जिसमें मोनिका भटनागर, कुसला राजेंद्रन और प्राजक्ता दांडेकरअपने पति के साथ साझेदारी में काम करती हैं। इससे ये बात साफ हो जाती है, कि वैज्ञानिक पति होनामहिला वैज्ञानिक के लिए एकसमर्थक बात होती है।
महिलाओं के इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए कहीं न कहीं परिवार का प्रोत्साहन भी महत्वपूर्ण है और जब महिलाओं को परिवार और अनुसंधान जीवन में से चयन में से वे परिवार को चुनती हैं, ऐसा देखा जाता है।
क्योंकि बच्चों और घर की देख-रेख के लिए हमारे समाज में माना जाता है कि वो महिलाओं का ही काम हैं, इसलिए महिलाओं के लिए 9 से 5 बजे की नौकरी को बड़ा अच्छा माना जाता है। पर वैज्ञानिक क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं इस तरह काम नहीं करना चाहती हैं। और खोज से जुड़े अध्ययन में तो ये संभव भी नहीं है,क्योंकि अनुसंधान के काम को समय सीमा में बांधकर नहीं रख जा सकता है। और रात बेरात आपको काम करना पड़ता है।
अक्सर ये देखा जाता है इसलिए किपरिवार की जिम्मेदारियां के चलते महिला वैज्ञानिक अपने बच्चों के भविष्य की योजना बना रही होती है, यहीं उनके वैज्ञानिक पति अपने अनुसंधान के बारे में योजना बनाते हैं।
महिलाओं के वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे लाने में वैज्ञानिक विचारों की कमी एक महत्वपूर्ण कारण हैं। लोगों के लिए विज्ञान आधारित ब्लॉग, विज्ञान आधारित वेबसाइट, नागरिक विज्ञान को बढ़ावा देना, विज्ञान आधारित कार्यक्रम और विज्ञान विषय के पत्रकारों की मदद से वैज्ञानिकों से बातचीत जैसी चीजें होनी चाहिए। आखिर में काम के दौरान यौन उत्पीड़न जैसा कारण भी कहीं न कहीं महिलाओं को इस क्षेत्र में आने से रोकता है।
यह स्टोरी द लाइफ ऑफ़ साइंस में पहले आई थी। आशिमा डोगरा और नंदिता जयराज इस सराहनीय परियोजना में देश के कोने कोने में घूम कर महिला वैज्ञानिकों से मिलती हैं और उनके बारे में लिखतीं हैं।