उत्तर प्रदेष राज्य में षौचालय की बड़ी अव्यवस्था है। सिर्फ नियम ही आता है कि घर-घर षौचालय बनवायें। लेकिन जो खुद बनवाता है उसी के घर में षौचालय है बाकी सब बाहर जाने को मजबूर हैं। उदाहरण के लिए अम्बेडरनगर के एक गांव में तो विकलांगो के लिए तक षौचालय नहीं बना है। षौचालय का पैसा गांव के प्रधान के खातों में आता है पर हर कोई षौचालय बनवा नहीं पाता है। और वो कुछ बनवा देते हैं पर कई लोग इस सुविधा से वंचित रह जाते हैं। कहीं सीट नहीं लगी रहती है तो कहीं पानी की असुविधा है। बहुत लोग ऐसे हैं जो अपने घर की लड़कियों महिलाओं को बाहर जाने देना मुनासिब नहीं समझते। अधिकतर महिलाएं रात के अंधेरे में शुक्क करने निकलती हैं और इससे उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। मजबूरन लोग आसपास के खेतो में जगह ढूंढते हैं। इसे लेकर अक्सर लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं। खुले मैदान भी अगर अमीर लोग अपने नाम करा लें तो गरीब ग्रामीण लोगों का क्या होगा? सरकार ने निर्मल भारत जैसे योजनाएं चलाई हैं पर सही तरीके से लागू करने में अब भी उत्तर प्रदेश और अन्य राज्य बहुत पीछे हैं। स्थानीय प्रशासन और पंचायतों को इस मामले में पहल करने की विशेष जरुरत है।
विकलांगो का भी नहीं बना शौचालय
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सरकारी योजना में लगत हव पइसा
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