बचपन से एकान्ड्रप्लेश़ यानी बौनेपन और मानसिक समझ की बीमारी से ग्रस्त अर्पण आज अपनी उम्र के नौजवानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रहा है।
अर्पण को बचपन से ही मानसिक रूप से चीजें समझने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। अर्पण बातों को समझता था लेकिन उसे बोल और लिख नहीं पाता था। लेकिन इस अपनी शारीरिक और मानसिक विकलांगता के कारण अर्पण ने कभी खुद को दूसरे बच्चों से कम नहीं समझा।
अर्पण ने पढ़ाई के लिए सबसे पहले समाधान संस्था को चुना। यह खास बच्चों के लिए पढ़ाई शुरू करने का एक शैक्षिक संस्थान है। इसके बाद अर्पण ने लेडी लर्विन कॉलेज और उसके बाद श्री राम स्कूल और लर्निंग सेंटर से अपनी बारवीं की पढ़ाई पूरी की। पूरी मेहनत और लगन के साथ अर्पण ने अपनी बीए स्नातक की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी से पूरी की।
अर्पण हमेशा से कुछ अलग करना चाहता था इसलिए उसने बाकी बच्चों से अलग हट कर डीजे बनने का सोचा। इसके लिए उन्होंने बाकी सामान्य जीवन जीने वाले लोगों के बुरे व्यवहार के बीच बीट फैक्ट्री (जहाँ संगीत बनाना सिखाया जाता है) से संगीत सीखा और लोगों के तानों और आलोचनाओं की परवाह किए बगैर अपने लक्ष्य को पाने में लगे रहे।
ऐसे समाज में जहाँ मानसिक और शारीरिक विकलांगता के किसी व्यक्ति को लोग अपनाने से इनकार कर देते हैं वहां अर्पण ने अपनी पहचान बनाई है। अर्पण ने हमेशा लोगों को झूठा साबित किया।
फोटो और लेख साभार: यूथ की आवाज़