नवरात्रि का का समय मड़इन खातिर खास होत है। साल भर मड़ई या समय का इंतजार करत है। तहसील स्तर के अधिकारी बढ़-चढ़ के भाग लेत हैं। मेला लगवावैं खातिर दुकानन-दुकानन से वसूली कीन जात है जेहिसे वा रूपिया से मेला खातिर बिजली अउर पानी जइसे के व्यवरूथा कीन जा सकै।
तहसील से मेला के समिति बनाई जात है। जउन मेला लगवावैं खातिर जिम्मेदार होत है। जेतना जिम्मेदार मेला समिति होत है, वतना ही जिम्मेदार तहसील स्तर के अधिकारी होत है। अगर जमीनी स्तर मा देखा जाय तौ इं समिति अउर अधिकारी जेतना जिम्मेदारी से वसूली करत हैं वतना जिम्मेदारी से मेला के व्यवस्था नहीं करै। हम बात करित है शेरपुर के खत्री पहाड़ मा बना विन्ध्यवासिनी मंदिर के। हेंया नवरात्रि के समय नौ दिन मेला रहत है।
या समय रोज का हजारन मड़ई घूमैं आवत है। बिना बिजली के मड़ई रात गुजारत है। दुकान के बिक्री नहीं होत। पियास बुझावैं खातिर मड़ई पाउच का पानी खरीद के पियैं का मजबूर है। बिजली न रहैं से मेला के रौनक नहीं रहत आय। अगर मड़ई पानी खरीद के पी ले तौ वसूली कीन गा रूपिया कहां गा? काहे कीन जात है वसूली। इनतान मा सवाल या उठत है कि मेला के व्यवस्था खातिर वसूला गा रूपिया से मेला के व्यवस्था काहे नहीं कीन गे आय।
वसूली साल भर, व्यवरूथा नौ दिन के भी नहीं
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