1980 के दशक में, 12 वर्षीय वनिता तीव्र सिर दर्द से पीड़ित थीं और कुछ भाग्यशाली भारतीयों में से एक थीं जिनका दिल्ली के मशहूर हॉस्पिटल एम्स में दिमाग का एक्सरे (सीटी स्कैन) हुआ। उस दिन से वनिता ने एक दिमाग के डॉक्टर यानी ‘न्यूरोसर्जन’ बनने का सपना देख लिया था। लेकिन जब मेडिकल स्कूल में उनका दाखला नहीं हुआ, तब उन्होंने जीव-विज्ञान की पढ़ाई शुरू की।
सालों तक काम करते हुए उन्होंने पर्यावरण जैव प्रौद्योगिकी पर लगातार अनुसंधान कर इस क्षेत्र में कई गुना सराहनीय काम किया है। उनके प्रयासों और विचारों ने भारत में कचरा प्रबंधन की जटिल पहेली को सुलझाने में महत्वपूर्ण सहयोग दिया है। उन्हें बिरक डीबीटी कार्यक्रम से 35 लाख रुपए की सरकार की तरफ से वित्तय (जैव प्रौद्योगिकी इग्निशन अनुदान) अनुदान से सम्मानित किया गया है।
45 साल की उम्र में अब वनिता एक उद्यमी के रूप में स्थापित हो गयी हैं। 18 महीनें की कड़ी मेहनत कर एक फार्मूला तैयार किया जिसके लिए उन्हें महत्वपूर्ण पुरुस्कार दिया गया।
उन्होंने एक ऐसा सूक्ष्म जीव कॉकटेल तैयार किया है जो कीचड़ को ‘सूखा दानेदार कीचड़’ के रूप में बदल देता है। इसके लिए उन्हें बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यावसायीकरण के लिए काफी मात्रा में वित्तीय अनुदान की आवश्यकता होती है। वह बताती हैं, “यह कोई प्रयोगात्मक अध्ययन नहीं बल्कि यह तथ्यों पर आधारित प्रयोग है। जिसे पेटेंट भी कराया जा सकता है और इसका व्यवसायिक प्रयोग भी किया जा सकता है।”
यह उनका तीसरा पेटेंट प्रयोग होगा। इससे पहले उनके दो अन्य प्रयोग पहले ही पेटेंट हो चुके हैं। इसमें सब्जी बाजार से मिले कचरे पर शोध और इस जैविक कचरे से हाइड्रोजन गैस बनाने का प्रयोग महत्वपूर्ण रहा है। इनके तीनों प्रयोग अब प्रौद्योगिकी रूप से कार्यशील हैं और इन्हें रेवी पर्यावरण समाधान नामक पोर्टफोलियो से जाना जाता है।
वनिता बताती हैं, “रेवी पोर्टफोलियो उनका पहला ऐसा उत्पादन होगा जो सबसे बड़ा प्रयोग होगा साथ ही जिसे जल्द ही बाजार में भी लाया जा सकेगा।”
वनिता का मुख्य लक्ष्य देश के मौजूद हर जैविक कचरे को प्रयोगों द्वारा ऊर्जा में बदलना है। एक रिपोर्ट के अनुसार, इस कचरे से बनी ऊर्जा शहरों में बिजली बनाने के काम आती है। वर्तमान में, भारत में ऊर्जा का केवल 154 मेगावाट भाग, एक वर्ष में औद्योगिक और शहरी कचरे से उत्पन्न किया जा रहा है। जबकि 4गीगाबाइट-6गीगाबाइट तक बिजली काफी होती है दिल्ली जैसे शहर को रौशनी देने के लिए।
फोटो और लेख साभार: द लाइफ ऑफ़ साइंस