जिला बांदा। इक्यावन वर्षीय दिव्याबाला पेषे से प्राइवेट वकील हंै। दस सालों से वकालत कर रही हैं। वकीलों के इस कम्पाउंड में अकेली दिव्यबाला महिला हैं।
‘लड़के-लड़की के भेदभाव को जैसे नज़रअंदाज़ किया जाता था उस पर जंग छेड़ना चाहती थी मैं। मैंने अपने ससुराल में अपने हक की लड़ाई लड़ी। उसके बाद अपनी लड़कियों को षिक्षा, खान पान, पहनावे और उनकी आज़्ाादी के लिए लड़ी।’
‘लोगों को महिला दिवस गांव में उन लोगें के बीच मनाना चाहिए जिनको इसके बारे में जानकारी नहीं है, ताकि रात दिन कठिन परिश्रम करने वाली महिलाएं भी कम से कम एक दिन अपनी आज़्ाादी महसूस कर सकें।’