13 मार्च को लोकसभा में बिना बहस के फाइनेंस विधेयक पारित हुआ। अगले वित्त वर्ष में 89.25 लाख करोड़ रुपए खर्च की अनुमति वाला विनियोग विधेयक भी सरकार ने पास करा लिया है। पूरी कवायद में सिर्फ 30 मिनट से भी कम लगे।
हुआ यूँ कि बजट सत्र के दूसरे हिस्से में विपक्ष के विरोध के कारण लोकसभा और राज्यसभा की कार्रवाई नहीं चल पा रही है। आठ दिनों से दोनों सदनों में कोई काम नहीं हुआ है। इसीलिए सरकार ने बजट पास कराने के लिए ‘गिलोटिन’ का रास्ता निकाला। इसमें सभी मांगों को एक साथ ध्वनिमत के लिए रखा जाता है, भले ही उन पर बहस हुई हो या नहीं।
ठीक इसी तरह, 2013-14 और 2003-04 में बजट पास कराया गया था। सरकार के लिए बजट पास कराना जरूरी है, क्योंकि बिना संसद की मंजूरी के वह एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकती है।
वित्त और विनियोग दोनों विधेयक वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किए, जिन्हें ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। जेटली ने जैसे ही प्रस्ताव रखा, विपक्ष इसका विरोध करने लगा।
लोकसभा ने 2017-18 के लिए 85,315 करोड़ की चौथी अनुपूरक मांग को भी मंजूरी दे दी। इससे राज्यों को जीएसटी से हुए नुकसान की भरपाई की जाएगी।
वित्त और विनियोग विधेयक पास होने के बाद लोकसभा में बजट की प्रक्रिया पूरी हो गई है। अब इन्हें राज्यसभा में भेजा जाएगा। लेकिन दोनों मनी बिल हैं, इसलिए अगर राज्यसभा ने 14 दिनों में इसे नहीं लौटाया तो इसे पारित माना जाएगा।
इसी तरह से 15 मार्च को भी जल्दबाजी में अन्य विधयक पास कराये गये।
श्रम राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने लोकसभा में कर्मचारियों की ग्रेच्युटी के संबंध में ग्रेच्युटी भुगतान (संशोधन), विधेयक 2017 रखा, जिसे हंगामे के बीच ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
सरकार ने इसके बाद विशिष्ट राहत (संशोधन) विधेयक, 2017 सदन के समक्ष रखा और इसे भी ध्वनिमत से पारित कर दिया गया।
इससे पहले भी हंगामे के बीच वित्त विधेयक, 2018 व विनियोग विधेयक और अनुदान मांग को पारित किया गया था।
ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के अनुसार, कर्मचारियों को 10 लाख रुपये से ज्यादा की ग्रेच्युटी नहीं दी जा सकती। अब संशोधन विधेयक में इस तय सीमा को बढ़ाकर 20 लाख करने का प्रावधान किया गया है।