म्यांमार दक्षिण एशिया में बसा एक देश। भारत और चीन के बीच बसा होने के कारण इस देश की शांति और तरक्की कहीं न कहीं भारत पर भी असर डालती है।
ब्रिटिश राज से तो 1948 में इस देश को आज़ादी मिल गई थी। मगर सेना का शासन यहां पर करीब आधी सदी से भी ज़्यादा समय से है। लेकिन इस बार यहां हुए आम चुनाव लोकतंत्र की उम्मीद लेकर आए हैं। आठ नवंबर को नतीजे आए। नतीजों से साफ हो गया कि जनता ने एक बार फिर लोकतंत्र को चुना है। इसमें आंग सान सू की की पार्टी नेशनल लीग फाॅर डेमोक्रेसी को भारी जीत मिली। लोग खुश हैं मगर डरे हुए भी।
1990 में पहले भी आंग सान सू की की पार्टी जीती थी। मगर वहां की सेना समर्थित सरकार ने नतीजे मानने से ही मना कर दिया था। सू की को इस जीत के बदले उनके ही घर में पंद्रह साल नज़रबंद रहना पड़ा। हालांकि 2011 के चुनाव के बाद सू की की पार्टी ने जब फिर अच्छी संख्या में अपने सांसदों की मौजूदगी दर्ज कराई तो सेना समर्थित सरकार को लोकतंत्र के हिमायती कुछ सांसदों को संसद में दाखिल करना पड़ा। मगर अब देखना यह है कि इस बार सेना समर्थित सरकार जनमत को मानती है या फिर कोई हंगामा खड़ा करती है। क्योंकि इस बार तो भारी बहुमत से लोकतंत्र हिमायती पार्टी जीतकर आई है। अगर जनमत को जगह मिली तो यह बहुत बड़ी जीत होगी। हालांकि फिर भी सेना के शासन से पूरी तरह छुटकारा मिल जाएगा यह कहना गलत ही होगा। क्योंकि यहां के संविधान में सेना के लिए पच्चीस प्रतिशत सीटें आरक्षित रखी गई हैं। इसलिए सेना का दखल तो फिर भी रहेगा। मगर इस जीत को आंग सान सू की की लंबी लड़ाई के नतीजे के तौर पर एक बड़ा कदम तो माना ही जाएगा।
लोकतंत्र जीत की खुशी मगर अभी डर बाकी
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