बांदा जिले का अतर्रा कस्बा लाई भट्ठी के नाम से प्रसिद्ध है। यहां बनने वाली 50 साल पुरानी लाई भट्ठी आज भी अपने कुरकुरेपन के कारण सबको खूब भाती है।
धुआं धक्कड़ के साथ लाई भूंजना काफी कठिन होता है। यही वजह है कि कई लोग अपना पुश्तैनी काम छोड़कर दूसरे कामों में लग गए। पर दो परिवार आज भी भट्ठी के अपने पुश्तैनी काम को कर रहे हैं।
लाई बनाने वाली शिवदुलारी बताती हैं कि हम लोग 50 साल से लाई भूंजने का काम कर रहे हैं। ये हमारे पुरखों का काम है। हम एक दिन में डेढ़ कुन्तल लाई भूंजते हैं।
ऐसे बनती है लाई भट्ठी
लाई भूंजने के लिए हम लोग धान को पहले कन्सरे यानी काठ के एक बर्तन में भिगोते हैं। जब धान फूल जाता है, तो हलका सुखाते हैं। सूखने के बाद भट्ठी में भूंजी गई लाई को कड़ाही में कलहारते हैं। फिर छत में ले जाकर सुखाते हैं। और चक्की में धान को हल्का मोटा दरवाते हैं। फिर नमक के पानी का छींटा लगाकर भट्ठी में भूंजते हैं। इस लाई को अतर्रा, बांदा, कर्वी, महोबा और हमीरपुर तक के व्यापारी खरीदने आते हैं।
लाई भट्ठी के नाम पर मशहूर अतर्रा कस्बा
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