जि़ला वाराणसी। गरीबों के हक में लिखने वाले मुंशी प्रेमचंद के गांव के लोगों का ही हक मारा जा रहा है। दरअसल उनके गांव में सरकार ने प्रेमचन्द्र मेमोरियल रिसर्च सेंटर बनवाया है। इसका उद्घाटन 8 अक्टूबर को होना है। बड़ी बात यह है कि यह सेंटर गांव के लोगों की ज़मीन पर बनकर तैयार हुआ है। लेकिन उन्हें इसके बदले कोई मुआवज़ा नहीं मिला है।
साल 2005 में समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव यहां आए थे। उन्होंने इस रिसर्च सेंटर को बनाने की घोषणा की थी। गांव वालों से ज़मीन के बदले उन्हें नौकरी देने का वादा किया था। उन्होंने कहा था कि इस रिसर्च सेंटर में गांव के लोगों को नौकरी दी जाएगी। इस घोषणा के छह साल बाद यानी 2011 में इस सेंटर के लिए ज़मीन ले ली गई। मगर इसके बदले लिखित में उन्हें कुछ भी नहीं दिया गया। यानी नौकरी का वादा अभी जुबानी ही है।
लोग आस लगाए बैठे हैं कि सेंटर शुरू होते ही उन्हें नौकरी मिलेगी। मगर इस रिसर्च सेंटर की देखभाल करने वाले सुरेश चंद्र दूबे की बात सुनकर लगता है कि यह नौकरी मिलने में कई बाधाएं हैं। उन्होंने बताया कि यहां पर पढ़ाई का जो स्तर निर्धारित किया गया है उसको देखने से साफ लगता है कि गांव के ज़्यादातर लोग उसमें नहीं आएंगे। और अगर एक घर में चार लड़के हैं तो नौकरी अगर मिली भी तो किसे मिलेगी? क्या यह फसाद की जड़ नहीं होगी?