एक जमाना था जब हम सोचते थे कि धरती गोल नहीं, सपाट है. हिन्दू धर्म सात समुन्दर पार यात्रा करने से रोकता था, खास करके ब्राह्मण समुदाय को। ज्यादातर लोग जहां पैदा होते थे वहीं खतम हो जाते थे। लेकिन बाहर निकलने की चाह हमेशा से हम में थी। धीरे धीरे हमने अलग अलग देश खोज निकाले, दुनिया को पूरी तरह से समझा, अलग समुदाय, संस्कृति को जाना । आज अपने ही देश या शहर में बैठे हम यूरोप के दृश्य देख सकते हैं। सड़कें हैं, रेल गाडी हैं, जहाज है, हवाई जहाज भी हैं। अगर चाह है तो हम दरवाजे से निकल कर दुनिया देख सकते हैं. लोगों ने -महिलाओं और पुरुषों ने – पूरी दुनिया का सफर एक साल में किया है, जहाज से किया है, साइकिल से किया है, हवा में उड़ने वाले गुबारे से किया है। कम पैसों में भी यात्रा हो सकती है, और कई सुन्दर चीजें देख सकते हैं। क्यों सोचे दूसरे देशों के बारे में जब अपने देश, अपने राज्य, अरे अपने गांव में ही ऐसी जगहें हैं जहां हम आज तक नहीं गए। लेकिन यात्रा करना क्यों जरूरी है? क्योंकि रोजमर्रा की जिन्दगी से अलग कुछ नया करना हर इंसान के लिए जरूरी है। नई चीजे देखने और करने की कोई उम्र नहीं होती। हर नई जगह, हर नए व्यक्ति से कुछ सीखने को मिलता है। स्कूल, किताबों, काम काज के अलावा जो सीख हमें इन यात्राओं से मिलती है वो भले ही कोई प्रमाणपत्र के रूप में न हो लेकिन वो हमेशा यादगार रहती हैं। तो चलो, बांधो झोला और निकल पड़ो, समय कम है, दुनिया बहुत बड़ी है। जीवन का लुत्फ उठाओ!
लगाओ पैरों पर पहिये
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