स्टेशन पै ट्रेन के गुजरै कै शोर अउर उनके पास बसी छोटी-छोटी बस्ती आप सबका अक्सर देखै का मिल जाये। अपने परिवार का एक पन्नी के टेंट मा समेटे यै लोग कउनौ घुमक्कड़ न हुवय बल्कि रोजी रोटी के तलास मा भटकत बेरोजगार हुवय। अपने गाँव से दूर इनकै जिन्दगी सालन से यही तरह गुजरत बाय।
छंगा टीकमगढ़ निवासी कै कहब बाय कि तीस साल से मजदूरी कर्ट हई। रेलवे के काम मा हमै बारह महीना काम मिलाथै। जहां भी साइड पै जगह हुआथै वही बुलाय लियाथे।
नीलम टीकमगढ़ कै कहब बाय कि हमरे देश मा मजदूरी नाय बाय येही से आवै का पराथै। मजदूरी हुवत तौ काहे आइत। कल्लू कै कहब बाय की विकलांग हई हमरे पास कउनौ चारा नाय बाय हम अउर कउनौ मजदूरी का नाय जाय सकित। जेसे बच्चन का पाल लियब।
एकरे बावजूद इनके सबका भरपेट भोजन नसीब नाय हुवत न ही इनकै गेदहरा पढाई कै पावै।
कल्लू टीकमगढ़ निवासी कै कहब बाय कि आठ-दस दिन खाना नसीब नाय हुवत।
नीमा टीकमगढ़ निवासी कै कहब बाय कि हम पढ़े तौ चाही थी पर काव करी पढ़े के ताई पैसा तौ चाही। मम्मी पापा के साथे काम करीथी।
एही बदलते समय मा सब कुछ बदलिगा लकिन का बिल्लो कै जिन्दगी बदली?
बिल्लो टीकमगढ़ कै कहब बाय कि काव बदला कुछ नाय। सब समय से एसे ही चला आवत बाय।
रिपोर्टर- नसरीन
Published on Aug 16, 2017