21 जून यानि अन्तरराष्ट्रीय योगा दिवस पर देश- विदेश के हर कोने से सामूहिक योगा आयोजन की खबरें आई। 4 साल पहले योगा के महत्व को मानते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का निश्चय किया गया। योगा दिवस से कुछ समय पहले से ही इसके आयोजन की तैयारी और बड़े-बड़े विज्ञापनों से सड़के रंगीन हो गई थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विरोष रुचि के कारण योगा दिवस को तवज्जो भी बहुत खास मिला और योग को हर मर्ज की दवा के रुप में दिखाया गया, जो की गलत है.
देश में दिन-ब-दिन बढ़ती समस्या को हल करने में भी प्रधानमंत्री ऐसा ध्यान देते तो शायद इन समस्या से कुछ हद तक उबरा जा सके। तो हम सबसे पहले बात करते हैं स्वास्थ्य की। हां इस ही स्वास्थ्य की जिसके लिए रामबाण दवा योग बताई जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2018 की ‘स्वास्थ्य प्रोफाइल’ में बताया कि देश में 11, 082 लोगों पर एक डॉक्टर की उपलब्धता है। वहीं देश में 10.5 लाख एलोपैथिक, 7.75 आयुष चिकित्सक हैं। आज भी भारत अपनी जीडीपी का 1 प्रतिशत खर्च ही स्वास्थ्य पर करता है। ‘लैंसेट’ की रिपोर्ट के अनुसार भारत स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और गुणवत्ता के मामले में भारत का 195 देशों में 145 वां स्थान है। इन हालतों में देश की बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था को पटरी में लाने के लिए कमर कस मेहनत की जरुरत है। जो शायद किसी योग से तो सही नहीं होने वाली।
देश के हर युवा के हाथ में काम देने की बात कहकर प्रधानसेवक बने नरेन्द्र मोदी को बता होगा कि बेरोजगारी की समस्या अब देश में बढ़ चुकी है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित ‘रोजगार-विहीन विकास रिपोर्ट – 2018’ के अनुसार भारत को अपने युवा जनसंख्या के लिए हर साल 81 लाख नई नौकरियां पैदा करने की आवश्यकता है और इतने रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए भारत की विकास दर 18% होने चाहिए। अभी देश की विकास दर 8 प्रतिशत है यानि 18 तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक और निजी निवेश में भारी निवेश करना पड़ेगा। देश में बेरोजगारी की समस्या कितनी बढ़ने वाली हैं इसका अनुमान आप अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट से लगा सकते हैं, जिसके अनुसार भारत 2018 में दुनिया का सबसे ज्यादा बेरोजगारी वाला देश दिखाई दे रहा है।
अब देश की वर्तमान सरकार और एक साल बाद नई बनने वाली सरकार की चुनौतियां इन दो स्तर पर है। देखना सब ये बाकी है कि इस तरफ ध्यान दिया जाता है या बस दिवस बनाकर जनता की कमाई उड़ाई जाती है। वैसे योगा तन-मन को दुरस्त तो कर सकता है, पर हो जाने वाली बीमारियों का इलाज और बेरोजगारी को खत्म नहीं कर सकता है। इन दोनों समस्याओं के लिए ठोस काम के साथ दृढ़ इच्छाशक्ति की जरुरत है।
साभार: अलका मनराल