रियो पैरालंपिक की रंगारंग और भव्य शुरुआत हुई लेकिन हमारे देश में ये उदघाटन समारोह किसी भी टीवी चैनल में नहीं दिखाया गया। पिछले महीने रियो में ही ओलम्पिक खेल दुनिया भर में चर्चा में रहे। भारत के मैच के दिनों सड़कों पर सन्नाटा छाया रहा क्योंकि सभी लोग टीवी पर मैच देख रहे थे। तो फिर रियो में हो रहे पैरालंपिक खेलों के साथ ऐसा भेद- भाव क्यों?
शारीरिक रूप से विकलांग खिलाड़ियों के लिए पैरालंपिक खेल आयोजित किये जाते हैं। ब्राज़ील देश में इस आयोजन का देश में चल रही आर्थिक मंदी और राजनीतिक उथल पुथल की वजह से विरोध हो रहा है। खेल आयोजित करना भी बहुत महंगा है। वित्तीय परेशानियों से जूझ रहे ब्राजील को भी अपने सरकारी फंड से करीब 6।2 करोड़ डॉलर आयोजन समिति को देने पड़े। अंतरराष्ट्रीय पैरालंपिक कमेटी के प्रेसिडेंट फिलिप क्रावेन ने इसे अब तक के पैरालंपिक अभियान की “सबसे बुरी स्थिति” बताया है।
ब्राजील के पर्यटन बोर्ड ‘एम्बटूर’ की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले रविवार तक जो तीस हजार टिकट बेचे गए, उन्हें विदेशियों ने खरीदा, जिनमें से अधिकांश अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन और फ्रांस से थे। टिकटों की बिक्री भी धीमी रफ़्तार से ही हुई।
रियो ओलंपिक को भारत में ढेरों दर्शक मिलने के बाद रियो पैरालंपिक की भारत में टीवी कवरेज नहीं होने को एक एनजीओ सिविलियन वेलफेयर फाउंडेशन ने पैरा खिलाड़ियों के साथ ‘भेदभाव’ करार दिया है। जब प्रधानमन्त्री अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में विकलांगों के अधिकारों की बात करते हैं तो फिर इन खेलों पर कोई बात क्हीं क्यों नहीं की गई?
पैरालंपिक खेलों में भी अंतरराष्ट्रीय शरणार्थियों की टीम भी शिरकत कर रही है। 1960 में हुए पहले पैरालंपिक के मुकाबले यह संख्या 11 गुनी है। इस बार 176 देशों के खिलाड़ियों का शामिल होना भी एक रिकॉर्ड है। अफ़सोस है कि हम इन्हें खेलते हुए नहीं देख पायेंगे।
रियो पैरालंपिक: खेलों में भेद-भाव
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