जिला वाराणसी, ब्लाक काशी विद्यापीठ, गांव कोटवां। न तो लाल (बी.पी.एल) कार्ड हव आउर न तो पीला (ए.पी.एल) कार्ड हव। हमने केतना बार प्रधान से कहली लेकिन प्रधान एककान से सुनीयन त दूसरे कान से देहियन।
इ समस्या हव कोटवां के दस पन्द्रह परिवार के। जहां के गरीब मजदूर राशनकार्ड खातिर तरसत हउवन। इ गांव में रहे वाले जमालुद्दीन आउर सरीफुन बतइलिन कि हमरे पास कउनो राशनकार्ड नाही हव। अगर पीला कार्ड भी बन जाए त कम से कम तेल मिलि त रात के दिया बारे के इन्तजाम हो जाई। एही गांव केशहाबुद्दीन बतइलन कि दू तीन साल पहिले हमार राशनकार्ड बनल रहल। लेकिन जब हम उनके वोट नाही दिए आउर उ एक बार फिर से जीत गइलन त हमार राशनकार्ड फाड़ के फेक देहलन आउर इ कह देहलन कि अभहीं तोहार उमर राशनकार्ड रखे के नाहीं हव। जबकि उ समय हम बाइस साल के रहे आउर हमार एक लइकी भी रहील अब तो हमरे दू लइकन हउवन। लेकिन अभहीं तक हमार उमर नाहीं भएल पता नहीं कब उमर होई। आउर कब राशनकार्ड बनी।
जब एकरे बारे में गांव के प्रधान मुनरूद्दीन हाजी से पूछाएल त ओन कउनो सवाल के जवाब देवे से इनकार कर देहलन।