जि़ला फैज़ाबाद। यह कहानी है किन्नर गुलशन बिंदु की जो दिल्ली से फैज़ाबाद पहुंचीं। अब वे 2017 के चुनाव की तैयारी में हैं। हमारी मुलाकात फैज़ाबाद की गुलाबबारी के पास उनके कार्ययालय में हुई। गुलशन बिंदु कुर्ता-सलवार पहने, गुलाबी दुपट्टा सर पर डाले, अपने कार्यालय में बैठी थीं। उम्र लगभग 40 साल होगी। और किन्नरों से बिलकुल अलग एकदम नेता जी लग रही थीं। दिखने में गोरी सी, ऊंचा कद, भारी आवाज़ लेकिन एक आकर्षक व्यक्तित्व की।
गुलशन बिंदु बिहार के सीतामढ़ी जि़ले की रहने वाली हैं लेकिन उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में, दिल्ली में हुआ। कुछ दिनों तक मां-बाप ने इस बात को छुपाए रखा कि वो किन्नर हैं। लेकिन धीरे-धीरे पता लग ही गया और पांच साल की उम्र में किन्नर समुदाय के लोगों ने उन्हें गोद ले लिया। गुलशन बिंदु नाम भी समुदाय के लोगों ने ही दिया। पहले के 30 साल दिल्ली में ही रहीं उसके बाद फरीदाबाद में, फिर रामजन्म भूमि आईं।
किन्नर समुदाय में ट्रांसफर की नीति है। उनके गुरु ने उन्हें फैज़ाबाद आने के लिए कहा। उन्होंने हंसते हुए कहा कि वे सीतामढ़ी की हैं, जहां सीता का जन्म हुआ और अयोध्या सीता का ससुराल है मतलब वे अपने जीजा के यहां हैं। आज कोई भी किन्नर चाहे वो गुरु हो या शिष्य उनकी इजाज़त के बिना बाहरवालों से बात नहीं करता। वो अविवादित प्रवक्ता हैं, फैज़ाबाद किन्नर समुदाय की ‘नेताजी’।
राजनीति में आने के बारे में गुलशन बिंदु बताती हैं कि उन्हें नाचना-गाना अच्छा नहीं लगता। ‘‘कितने दिनों तक घुंघरु की कमाई से लोगों की मदद कर पाउंगी?’’ वो मानती हैं कि समाज सेवा करना उनके लिए एक स्वाभाविक कार्य है। उनकी योजना, बुरी हालत में पड़े सीतापुर नेत्र अस्पताल को सुधारने की है। इस अस्पताल की ज़मीन उनके किन्नर पूर्वजों ने बिल्डरों को उपहार में दी थी। अभी पहली मंजि़ल पर पुलिस चैकी गैरकानूनी ढंग से चल रही है।
गुलशन के अनुसार राजनीतिक पार्टियों का जनता की समस्या से कोई लेना-देना नहीं होता। गुलशन घर-घर जाती हैं और उन्हें पता है लोगों की क्या समस्याएं हैं? उन्हें अपने समुदाय के लोगों के लिए भी कुछ करना है ताकि लोग किन्नर समाज को इज़्ज़त कि नज़र से देखें। किन्नरों के लिए स्कूल नहीं होता। वे जहां जाते हैं, लोग उनका मज़ाक उड़ाते हैं। एक बार की घटना है, जब वे हरियाणा गईं, उन्हें किसी ने रहने को घर नहीं दिया। फिर वहीं की महिला ने उन्हें मकान दिया। उस महिला से भी लोगों ने लड़ाई की। गुलशन किन्नर समाज और आम जनता दोनों के हित में काम करना चाहती हैं। इसी चाहत ने उन्हें 2013 के विधायकी और चेयरमैन के चुनाव लड़ने के लिए तैयार किया।
उनके चुनाव की तैयारियों और गुज़रे चुनाव की रणनीति जानने हम शिव सामंत के पास गए। 2013 के चुनाव प्रचार की जि़म्मेदारी इन्हीं के सर थी। इनके अनुसार गुलशन बिंदुुुु के मिलनसार व्यवहार ने ही उन्हें विधायिकी में 22 हज़ार वोट दिलाए। विधायिकी के बाद ही चेयरमैन का चुनाव हुआ उसमें भी भरपूर सहयोग मिला। गुलशन बहुत ही कम खर्च में चुनाव लड़ीं।
गुलशन 2017 के चुनाव के लिए भी तैयार हैं। उनका कहना था, ‘‘अगर जनता का प्यार और किस्मत साथ रही तो ज़रुर जीतूंगी।’’ किसी पार्टी के साथ चुनाव में उतरना है या निदर्लीय, ये उन्होंने नहीं बताया।