जिला टीकमगढ़ और ललितपुर आज कल तो सब गांव और शहरान में खुशी कि लहर झूम रई सब लोग खुशयाली मना रहे हे। रक्षा बंधन कि तो बड़े होय या छोटे सब खुश हे। और सबको रक्षाबंधन कि खुशी हे।
एसे ही टीकमगढ़ और ललितपुर में भी झूमी खुशयाली और आदमियन को धंधो भी भओ शुरू और बिक्री में फायदा।
ललितपुर के सुरेश कुमार ने बताई के हम राखी घरे बनात फिर उने बेचत हे। और राखी बनाबे को सामान हम दिल्ली से लेयात और फिर घरे बनात। हमे कम से कम चालीस साल हो गयी और जामे फायदा भी मिलत अगर मेहनत करो तो। और नई करने तो बात अलग हे। एक दिना में एक आदमी कम से कम सौ राखी बना लेत। और अगर ज्यादा जने हे तो तीन चार सौ राखी बना लेत।
हमीद ने बताई के हम जो धंधो बीस साल से कर रए और हमाय ते अगल बगल के लेबे आत और दुकान बाले भी आत थोक बाले और फिर बजार में भी बेचबे जात। कम से कम एक दिना में हम चार पांच सौ राखी बना लेत और पूरी बिक जाती। बस एक महीना को काम हे बस बाके बाद दूसरो धंधो करत।
कुसुम ने बताई के हमे जा काम में कम से कम दस प्रतिशत कि फायदा हो जात।
फिरोजखान ने बताई के हम दूसरे कि दुकान पे काम करत सो हमे तो महीना के बारह हजार मिलत।
शिवानी झा ने बताई के हमें राखी बनाबो हमाय मौसिया ने सिखाओ। हम पढ़ाई भी करत हे। लेकिन अबे घर में ज्यादा काम होबे के मारे मताई बाप कि मदद भी करने परत। हम जो काम एक महीना से कर रए। और एक महीना बाद तो बेसे भी जो काम बंद हो जात फिर बाके बाद फिर अगली साल करे। जोई धंधो होत हमाय घर में सब जने करत मताई बाप बेने और भज्जा।
एसे ही टीकमगढ़ और ललितपुर में भी झूमी खुशयाली और आदमियन को धंधो भी भओ शुरू और बिक्री में फायदा।
ललितपुर के सुरेश कुमार ने बताई के हम राखी घरे बनात फिर उने बेचत हे। और राखी बनाबे को सामान हम दिल्ली से लेयात और फिर घरे बनात। हमे कम से कम चालीस साल हो गयी और जामे फायदा भी मिलत अगर मेहनत करो तो। और नई करने तो बात अलग हे। एक दिना में एक आदमी कम से कम सौ राखी बना लेत। और अगर ज्यादा जने हे तो तीन चार सौ राखी बना लेत।
हमीद ने बताई के हम जो धंधो बीस साल से कर रए और हमाय ते अगल बगल के लेबे आत और दुकान बाले भी आत थोक बाले और फिर बजार में भी बेचबे जात। कम से कम एक दिना में हम चार पांच सौ राखी बना लेत और पूरी बिक जाती। बस एक महीना को काम हे बस बाके बाद दूसरो धंधो करत।
कुसुम ने बताई के हमे जा काम में कम से कम दस प्रतिशत कि फायदा हो जात।
फिरोजखान ने बताई के हम दूसरे कि दुकान पे काम करत सो हमे तो महीना के बारह हजार मिलत।
शिवानी झा ने बताई के हमें राखी बनाबो हमाय मौसिया ने सिखाओ। हम पढ़ाई भी करत हे। लेकिन अबे घर में ज्यादा काम होबे के मारे मताई बाप कि मदद भी करने परत। हम जो काम एक महीना से कर रए। और एक महीना बाद तो बेसे भी जो काम बंद हो जात फिर बाके बाद फिर अगली साल करे। जोई धंधो होत हमाय घर में सब जने करत मताई बाप बेने और भज्जा।
रिपोर्टर- सफीना और सुषमा
11/08/2016 को प्रकाशित
राखी की कहानी
टीकमगढ़ और ललितपुर से