पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलो में 4000 से ज्यादा तालाब गायब हो चुके हैं। चित्रकूट में 151 और बांदा में 869 तालाब अब तक सूख कर मैदान में तब्दील हो चुके हैं। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि तालाब और पोखर तेजी से सूखते जा रहे हैं और जलाशयों में पानी का संचयन कम होता जा रहा है।
20 अप्रैल से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ‘खेती तालाब की योजना’ नामक सूखा-राहत योजना की शुरुआत की है। जिसके अंतर्गत खेतों में किसानो के लिए 2000 तालाब बनवाये जायेंगे। इसमें कोई दो राय नहीं कि बुंदेलखंड को इस योजना की सख्त जरूरत है लेकिन इस योजना के बारे में जानने से पहले, एक नजर बुंदेलखंड के वर्तमान तालाबों की दुर्दशा पर भी डाल लेते हैं।
एक जमाने में बुंदेला और चंदेला राजाओं ने हजारों की संख्या में जल संरक्षण के लिए बुंदेलखंड में तालाबों का भंडार खोला था। आज वही तालाब कहीं नजर नहीं आते। कुछ सूख गए, कुछ खेल का मैदान बन गए, तो कुछ तालाबों ने शौचालय का रूप ले लिया है। आज हजारों की संख्या वाले बुन्देलखंडी तालाबों में पानी की जगह सिर्फ धूल उड़ रही है।
कहां गया तालाबों का शहर?
जिला चित्रकूट, ब्लॉक कर्वी शिवरामपुर कपडिया बस्ती में लगभग 90 साल पुराना एक तालाब है जो पिछले एक दशक से सूखा पड़ा है। कपडिया के पूर्व-प्रधान शिवबरन का कहना है कि “इस तालाब का सुंदरीकरण दो साल पहले कराया था और ब्लॉक में जाकर तालाब भरवाने के लिए अर्जी भी दे दी गई लेकिन आज तक अधिकारीयों के पास इसके लिए बजट नहीं आया है। हालत यह है कि लोग अब तालाबों में शौच करते है।”
ब्लॉक कर्वी, गांव गोंडा
जो हालत कपडिया की है वहीं हालात गोंडा की भी है। इस गांव में दो तालाब है और दोनों ही सूखे पड़े हुए हैं। तालाब गंदगी से भरा हुआ है, अन्ना जानवर प्यासे घूम रहे हैं और लोग पानी के लिए तरस रहे हैं। प्रधान-पति राजकरण सिंह पटेल कहते हैं कि ब्लॉक में कई बार तालाब में पानी भरवाने और सुंदरीकरण के लिए कहा गया लेकिन आज तक किसी ने नहीं सुना।
ब्लॉक रामनगर, गांव पहाड़ी
पहाड़ी गांव की निवासी इन्द्ररानी को दिन-प्रतिदिन अपने पशुओं की चिंता खाए जा रही है। लोगों के लिए तो हैंडपंप है लेकिन जानवर पीने कहां जाए? पानी की तलाश में घुमते-घुमते पशु गांव के बाहर चले जाते हैं। इन्द्ररानी को इस बात का डर है कि कहीं उसके जानवर खो ना जाए।
मऊ ब्लॉक के बरगढ़ कस्बे की भी यही कहानी है। सूखे तालाब के कारण लोग गांव से पलायन कर रहे है और जानवर तड़प कर मर रहे है। ब्लॉक पर अधिकारीयों को प्रधान सूचना पहुंचा रहे है लेकिन ना पानी आया और ना ही बजट।
जिला बांदा, नरैनी ब्लॉक के कुल 301 तालाब में से सिर्फ आठ तालाबों में पानी है! बाकी 293 तालाब बच्चों के खेलने के मैदान बन चुके हैं। सौंता, शाहबाजपुर और करतल ब्लॉक के ऐसे क्षेत्र हैं जहां लगभग 100 साल के तालाब पाए जाते हैं।
एक दशक पहले इन तालाबों का पानी करीब 1000 लोग इस्तेमाल करते थे। वर्तमान में, ब्लॉक में जलस्तर हर दिन दो-चार फीट गिर रहा है जिसके कारण हैंडपंप भी पानी नहीं दे पा रहे हैं। प्रधान और किसान यूनियन के सदस्य ब्लॉक पर सूची दे चुके है लेकिन सरकार की तरफ से अभी तक कोई मदद नहीं पहुंचाई गई है।
ब्लॉक तिंदवारी, गांव बरेठी
बरेठी गांव के सभी पांच तालाब सूखे पड़े है। जानवरों की दशा दयनीय हो चुकी है और दूर-दूर तक नदी, नहरों में पानी नहीं है।
प्रधान बिंदा प्रसाद ने कहा कि डीएम से पानी की व्यवस्था के लिए मांग की गयी है। फिलहाल तिंदवारी ब्लॉक के 269 तालाब में से 13 में इस हफ्ते पानी भरा जा रहा है।
महोबा में शुरू ‘खेत तालाब’ योजना
अखिलेश सरकार द्वारा शुरू की गई ‘खेत तालाब’ योजना की शुरुआत महोबा में चरखारी ब्लॉक के बम्हौरी गांव में 20 अप्रैल को हुई।
पंचायत जिला अध्यक्ष ममता यादव ने मलखान नामक किसान के खेत में फावड़ा चलाया और इस योजना का शुभारम्भ किया। ब्लॉक के अधिकारी सीडीओ शिवनारायण, जिला कृषि अधिकारी, भूमि संरक्षण अधिकारी और बीडीओ भी इस अवसर पर मौजूद थे। अधिकारीयों का कहना है कि ज्यादा ट्यूबवेल लगाने के कारण जल स्तर बहुत घट गया है, इसलिए सरकार ने इस योजना को शुरू किया है।
लाइन लगाओ, टैंकर आ रहे हैं!
मराठवाडा के लातूर जिले की तर्ज पर सुखा-ग्रस्त महोबा जिले को सरकारी टैंकर मिलने लगे हैं। खबर लहरिया ने कबरई ब्लॉक के टिकामऊ गांव में गांव वालों के साथ सरकारी टैंकर का स्वागत किया। टिकामऊ में पानी की समस्या पहले से ही है। गांव की रहनवाली सियादुलारी का कहना है कि ”मेरी शादी को 25 साल से ज्यादा हो गये हैं और जबसे इस गांव में आई हूं तभी से पानी के लिए हर दिन दो किलोमीटर दूर हैंडपंप से पानी लेने जाती हूं। हर बार पानी के लिए लम्बी लाइन रहती है। गांव में कोई पानी का स्त्रोत, कोई टंकी नहीं है। कुएं का पानी इतना गंदा है कि उसे पी भी नहीं सकते। लेकिन इस साल पहली बार, सूखे के कारण गांव में टैंकर आया है।“
इस गांव की आबादी लगभग 3500 है। भेजे गये टैंकर की क्षमता 4500 लीटर है और यह टैंकर दिन में चार बार गांव का चक्कर काटता है, यानि कुल 3500 लोगों के लिए 18000 लीटर प्रति दिन, या लगभग पांच लीटर पानी प्रति व्यक्ति पहुंचाया जाता है।
टिकामऊ में हैंडपंप की संख्या 42 है, जिनमे 8 हैंडपंप की खुदाई दोबारा करानी है। प्रधान संतोष का कहना है कि बाकी के 34 हैंडपंप ठीक है लेकिन फिलहाल पानी नहीं दे रहे हैं।
ग्रामीण इलाकों में हर व्यक्ति को प्रति दिन लगभग 60-80 लीटर पानी की जरुरत होती है, लेकिन जिस प्रकार टिकामऊ गांव में पानी मिल रहा है उससे तो हर व्यक्ति के लिए सिर्फ पांच लीटर पानी ही मिल रहा है। ऐसे में सिर्फ एक टैंकर से इस गांव की प्यास कैसे बुझेगी?
इतना ही नहीं, टैंकर के आने से गांव के वातावरण में बदलाव आया है। लोगों को थोड़ी राहत पहुंची है लेकिन पानी की बढ़ती समस्या के कारण, लड़ाई-झगड़े बढ़ गए हैं। फिलहाल टैंकर आ रहे हैं और लोग पाइप डाल रहे हैं।
गांव के लोगों का यह भी कहना है कि टैंकर सिर्फ नेता या दबंग लोगों के घरों के सामने रुकते हैं।
हालात यह है कि पानी की विकराल होती समस्या के बीच, सिर्फ कुछ ही लोगों को राहत मिल पा रही है।
तालाब के इर्द-गिर्द घूमती है गांव वालों की जिन्दगी
गांव के जीवन में तालाब मुख्य भूमिका निभाता है। जैसे हैंडपंप से पानी लेने के लिए महिलाओं का समूह हर दिन इक्कट्ठा होता है, वैसे ही तालाब ऐसे जगह हैं। पीने के पानी की जरुरत को छोड़कर तालाब के पानी से गांव वाले अपने दैनिक जीवन के कई काम पूरा करते हैं। कपड़े, बर्तन धोने से लेकर, नहाना और खेतो की सिंचाई के लिए सभी इन तालाबों पर ही निर्भर रहते हैं। तालाबों की सबसे ज्यादा जरुरत गांव के जानवरों को होती है। गर्मी का मौसम हो या ठंड का, तालाब एक ऐसा जलाशय है जो जानवरों को साल भर पानी देता है।
लेकिन, पिछले साल से लगातार चलती आ रही सूखे की समस्या से जानवरों का सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। सूखे को झलते हुए, बुंदेलखंड और वहां के तालाबों में अन्ना जानवरों के लिए एक बूंद पानी भी नहीं बचा है। गांवों में अधिकतर हैंडपंप और ट्यूबवेल के खराब होने के कारण और लगातार गिरते जा रहे जलस्तर के बाद, तालाबों की जरुरत बढ़ गई है। सामान्यतया तालाबों में पानी बारिश से जमा होता है लेकिन सरकार के द्वारा भी तालाबों में अब पानी भरवाया जाने लगा है।
खबर लहरिया ने बुंदेलखंड के तीन जिलों के तालाबों की जांच की है। चित्रकूट जिले में कुल 3692 तालाब और कुएं है, जिनमे 151 समाप्त हो चुके हैं, बांदा में 14598 है जिनमे 869 खत्म हो चुके हैं और महोबा में 8399 तालाब है, जिनमे 1402 गायब हो गये हैं।
ं आज इन तालाबों की स्थिति क्या है? हमारी जांच के अनुसार, तालाबों का ना तो सुंदरीकरण हुआ है और ना ही पानी भरवाया गया है। यही नहीं, मनरेगा के तहत जो तालाब बनवाने थे, वह काम निर्धारित समय से बहुत पीछे चल रहा है। यानि सरकार की पिछली सभी योजनाएं, ‘जल बचाओ अभियान’, ‘अपना तालाब अभियान’ आदि नहीं चली! ऐसे में इस नई ‘खेती तालाब’ योजना का क्या होगा?