रम्पुरिया गांव चित्रकूट जि़ले में मानिकपुर ब्लॉक का एक मजरा है। इस मजरे में 250 आदिवासी रहते हैं। लगभग पांच दशक पहले, कोल आदिवासियों ने रम्पुरिया की पथरीली ज़मीन में घर बसाया। यहां ना जल है, ना खेती के लिए ज़मीन। सिर्फ जंगल है। सूखा-ग्रस्त बुन्देलखण्ड में रम्पुरिया ऐसा एक मजरा है जिसे अभी तक मूल विकास की कोई सुविधा प्राप्त नहीं हुई है। यहां ना सड़क है, ना पानी, ना बिजली।
सड़क को देख लीजिए। रम्पुरिया पहुंचने के लिए पक्की सड़क नहीं बनी है, यहां कोई साधन भी नहीं है। गांव के स्कूल को ही देख लीजिए। स्कूल की दीवार टूट रही है और शौचालय नहीं है। रसोई घर खंडहर जैसे पड़ा है और पढ़ने के लिए बिजली नहीं है। रम्पुरिया में खेती का काम नहीं है। यहां की महिलाएं लकड़ी काट कर आधे दाम में बांदा, अत्तर्रा, और चित्रकूट की बाज़ारों में बेचती हैं।
रम्पुरिया इतना दूर है कि यहां तक प्रशासन पहुंच नहीं पाया है। किसी अधिकारी ने आज तक गांववालों के आवेदन पत्र का जवाब नहीं दिया है।
लेकिन रम्पुरिया की सबसे बड़ी समस्या है पानी। शिवकुमारी बताती हैं कि यहां पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। हर रोज़ वह जंगल से होते हुए एक किलोमीटर दूर पानी लेने जाती हैं। गावंवाले झुण्ड में पानी लाने जाते है क्योंकि जंगल के जानवरों का डर हमेशा रहता है। पानी दिखने में काफी खराब है, दूध की तरह सफेद पानी में कीड़े-मकोड़े भी हैं।
शिवकुमारी अपने बर्तन में पानी भरती हैं और उसे कपड़े में छानती हैं। इसी पानी में वे कपड़े और बर्तन धोती हैं और इसे ही पीने के लिए इस्तेमाल करती हैं। रम्पुरिया में आज तक सिर्फ एक हैण्डपम्प लगा है, वह भी स्कूल के अंदर। लेकिन पिछले एक साल से वह हैण्डपम्प भी बंद पड़ा हुआ है।