खबर लहरिया न्यूज़ नेटवर्क महिला पत्रकारों का एक समूह है। इस हफ्ते उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध पर एक टिप्पणी इस नेटवर्क की एक पत्रकार द्वारा लिखी गई है।
दिल्ली के एक उच्च वर्गीय परिवार की एक लड़की की शादी को तीन महीने ही गुजरे थे कि उस उसके ससुराल वालों ने उस पर हिंसा करनी शुरू कर दी। दिन गुजरने के साथ ही हिंसा भी बढ़ती ही गई। पति रोजाना मारता पीटता। सास से शिकायत करने पर वह कहती कि पति तो सबका मारता है। मेरा पति तो मुझे लात घूसों से मारता था। शुक्र है कि मेरा बेटा तुम्हें थप्पड़ से ही मारता है। नौबत यहां तक पहुंच गई कि लड़की को मारने की कोशिश की गई। अब लड़की ने जब मायके वालों को बताया तो वह उसे वापस मायके ले आए। वकील से संपर्क किया तो उसने उन्हें समझौते की सलाह दी। उसने कहा कि पति पत्नी के रिश्तों में यह सब तो होता ही रहता है। समझौता हो चुका है, लड़की अपने ससुराल में है। मगर उसके साथ दोबारा हिंसा शुरू हो गई है।
कई मामलों में पुलिस ही समझौता कराने वाली संस्था के रूप में काम करती है। वहां भी यही नजरिया होता है कि पति पत्नी के बीच हिंसा होना आम बात है। अब तो थानों में बकायदा ऐसे मामलों में काउंसलिंग भी की जाती है। इस तरह की काउंसलिंग में अक्सर लड़की को समझाया जाता है कि घर तोड़ना ठीक नहीं। औरतों का काम होता है घर जोड़ना, तोड़ना नहीं। गुस्से में हाथ उठ ही जाता है। पति और ससुराल वालों को थोड़ी बहुत फटकार देकर दोबारा लड़की को उनके साथ भेज दिया जाता है। मगर उसके बाद उस लड़की के साथ क्या हो रहा है, इसकी खोज खबर पुलिस या समझौता कराने वाली कोई संस्था नहीं लेती। ज्यादातर मामलों में औरतें हिंसा को अपनी नियति मानकर चुप हो जाती हैं। पूरी जिंदगी हिंसा सहते हुए गुजार देती हैं तो कुछ में उनकी हत्या तक हो जाती है।
शादी जैसे संबंध या व्यवस्था को लेकर समाज और यहां तक कि पुलिस व्यवस्था में रुढि़वादी सोच जड़ जमाए है। इस सोच के आगे यह कानून जंग लगे ही साबित होते हैं। ऐसी सोच औरतों को हिंसा सहने के लिए मजबूर करती है।