खबर लहरिया अतिथि कॉलमिस्ट यू.पी. की हलचल – बिना खेत वाले किसान की फिक्र कौन करे

यू.पी. की हलचल – बिना खेत वाले किसान की फिक्र कौन करे

प्रांजलि ठाकुर लखनऊ में रहने वाली पत्रकार हैं जो अलग -अलग अखबारों के लिए लिखती हैं। वो उत्तर प्रदेश के ज्वलंत मुद्दों पर राज्य के कई बड़े अखबारों में काम कर चुकी हैं।

देश का किसान इस समय दोहरी मार झेल रहा है। एक तरफ मौसम की मनमानी और दूसरी तरफ उस पर हो रही राजनीति। अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने में जुटी कांग्रेस के राहुल गांधी किसानों के मसीहा बन कर घूम रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी के मोदी मन की बात कर रहे हैं। जबकि राज्य की सरकार यानी समाजवादी पार्टी किसानों की मौतों के आंकड़ों को कम करने में लगी है। हालांकि मुआवजे की रकम में अच्छी खासी बढ़ोतरी जरूर हुई है। हर दल किसानों का हितैषी बनने का स्वांग रच रहा है। दरअसल चिंता किसानों की नहीं बल्कि उनके वोटों की है।
प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं। किसानों का वोट जिसकी झोली में गिरेगा, ताज उसी के सर पर सजेगा। ऐसे में हर दल इस मौके का फायदा उठाने की कोशिश में लगा है। यही वजह है कि खेत वाले किसान तो चर्चा में हैं, बिना खेत वाले किसान की फिक्र किसी को नहीं है। मुआवजा उन्हीं को मिलता है जिनके नाम खेती होती है। मगर जिनके पास खेती नहीं है वह भी मौसम की मार के शिकार हैं।
गांवों में सबसे गरीब किसान वह होता है जिसकी अपनी खेती नहीं होती। ऐसे लोग अधिया में खेती लेते हैं। अधिया यानी खेत और बीज, खेत मालिक का और पानी, मेहनत मजदूरी खेत लेने वाले की। फसल होने पर दोनों का आधा आधा। सूखा, बाढ़ या दूसरी किसी प्राकृतिक आपदा की स्थिति में मुआवजा सिर्फ खेत मालिक को मिलता है। बिना खेत वाला किसान सरकार से मदद की गुहार भी नहीं लगा सकता है। पर नेता इन किसानों का जिक्र करें भी तो क्यों? मौसम का असर किस किस पर पड़ा है यह जानने के लिए भला समय किसके पास है?
आजकल नेताओं के लिए किसान शब्द चिराग से निकले उस जिन्न की तरह है जो निकलते ही कहेगा क्या हुक्म है मेरे आका, और नेता कहेंगे, बदल दो सारे किसानों को वोट में।