सुमन गुप्ता उत्तर प्रदेश में वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे फैज़ाबाद स्थित जन मोर्चा अखबार में काम करती हैं। इस समय वे यू.पी. स्तर पर पत्रकार हैं।
राजधानी लखनऊ में बिजली विभाग के संविदा कर्मियों के विरोध प्रदर्शन से हंगामा मच गया। यह लोग स्थाई किए जाने की मांग कर रहे हैं। पुलिस की गाडि़यां फूंकी गईं। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने कार्यवाही की।
ऐसे हंगामों की जड़ तक जाना ज़रूरी है। कहीं न कहीं ऐसे विरोध प्रदर्शनों का कारण काम और वेतन के बीच संतुलन का न होना है। सरकारी विभागों में कर्मचारियों को संविदा में रखने या आउटसोर्सिंग के ज़रिए काम लेने का चलन बढ़ा है। शिक्षामित्र, लाइनमैन, मीटररीडर आदि कर्मचारी संविदाकर्मी के रूप में रखे जाते हैं। हालांकि सरकार ऐसा करके कम वेतन में ज़्यादा काम करा पाने में सक्षम हो पाई है। पर दूसरी तरफ ऐसे कर्मचारियों के बीच असंतोष बढ़ता जा रहा है।
बिजली विभाग के कर्मचारियों की नाराज़गी इसी असंतुलन और असंतुष्टि का नतीजा है। विभाग ढाई हज़ार वेतन देकर उन्हें खंभे पर चढ़ा तो देता है लेकिन दुर्घटना होने पर उन्हें उचित मुआवज़ा तक नहीं मिलता। और तो और सरकारी विभागों के स्थाई कर्मचारी भी अपना काम इन पर थोप देते हैं। यानि इन्हें काम ज़्यादा करना पड़ता है पर उसके बदले दाम कम मिलता है। वहीं स्थाई सरकारी कर्मचारियों को काम कम और वेतन अच्छा खासा मिलता है।
सरकारी नौकरियों में आबादी के कुल डेढ़ प्रतिशत लोग भी नहीं हैं लेकिन उनके वेतन भत्ते और सुविधाओं पर बजट का 65 से लेकर 85 फीसदी खर्च होता है। इस आंकड़े से आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आखिर ऐसे प्रदर्शनों का कारण क्या है?
इसका यह मतलब नहीं है कि हिंसक प्रदर्शन सही हैं लेकिन कारणों को खोजकर उनका उचित ढंग से समाधान ज़रूरी है। इस दोहरी व्यवस्था ने ही गरीब अमीर के बीच के अंतर को बढ़ाया है। लोग सरकारी नौकरियों में घूस देकर घुसना चाहते हैं। फिर यही कर्मचारी घूस लेकर नौकरी के लिए दी गई घूस की भरपाई करते हैं। घूस का घुन भी इस व्यवस्था की ही देन है।