खबर लहरिया न्यूज़ नेटवर्क महिला पत्रकारों का एक समूह है। इस हफ्ते यू.पी. की राजनीतिक स्थिति का आंकलन इस नेटवर्क की एक पत्रकार द्वारा किया गया है।
लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की हार से पार्टी से जुड़ी जनता और नेता, मंत्रियों को ज़ोर का झटका लगा है। उत्तर प्रदेश में बहत्तर सीटों में से ज़्यादातर सीटों पर बसपा का कब्ज़ा होता था। अब बहुजन समाज पार्टी का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा £त्म करने की चर्चा ज़ोरों पर है। कोई भी राजनितिक पार्टी तभी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी मानी जाती है जब उसने कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोक सभा में सीटें जीती हों। दिल्ली में विधान सभा के बाद बसपा के पास सिर्फ 1.3 प्रतिशत वोट रहे। पार्टी का राष्ट्रीय अस्तित्व खतरे में है।
दलितों की मसीहा मानी जाने वाली यह पार्टी को टूटते देख दलित समाज के लोग अपने आपको खतरे में महसूस कर रहे है। कई जाने माने जमीनी स्तर पर काम करने वाले नेता मंत्रियों को पार्टी से निकाला गया है। पार्टी से निकलने के बाद पूर्व बसपा के मंत्री दद्दू प्रसाद मायावती के ऊपर ही कीचड़ उछाल रहे हैं। उनका आरोप है कि मायावती अब बड़ी जातियांे से मोटी रकम लेकर पार्टी के साथ जोड़ रही है। इस लेनदेन में कितनी सच्चाई है – यह तो पार्टी के अंदर की बात है। पर इसका असर दलित समाज पर पड़ रहा है।
अगर बसपा पार्टी का राष्ट्रीय स्तर का दर्जा £त्म होता है तो आगे और कौन पार्टी होगी जो दलितों के हक की बात करेगी? उसके मुद्दे को आगे ले जायेगी? आने वाले विधान सभा चुनाव के लिए यह एक चिंता का विषय बना हुआ है। जो दलितों की उम्मीदें थीं कि बसपा के राज में दलितों को स्वतंत्रता से जीने की आजादी मिलती है, सरकारी नौकरी और पढ़ाई के मौके उनके लिए सरकारी योजनाओं में खास तरह का लाभ मिलता है, जातिगत मुद्दों में प्रषासनिक स्तर पर कारवाही की उम्मीदें ज़्यादा होती हैं, बड़ी जातियों से डर का माहौल कम रहता है – अब अगर इतनी सारी उम्मीदे लोगों की है तो इस पार्टी को बनाए रखने के लिए खास पहल क्या होगी – इस पर पार्टी को मंथन करने की जरूरत है।