भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में कन्या भ्रूण हत्या पर अंकुश लगाने के लिए आबंटित राशि में से आधी राशि खर्च नहीं की गई है।
2013 में जारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय सांख्यिकी रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण इलाकों में एक औसत महिला कम से कम तीन बच्चों को जन्म देती है। 2011 की जनगणना के अनुसार 0 और 6 साल के बीच आयु वर्ग के प्रति 1,000 लड़कों पर राज्य में 902 लड़कियां है। यह आंकड़े 1991 में 927 और 2001 में 916 से कम थे। लगभग तीन दशक पहले, 1981 में उत्तर प्रदेश में 935 का अनुपात दर्ज किया गया था।
इसी अवधि के दौरान, 0 से 6 वर्ष के आयु वर्ग के बीच देश में बाल लिंग अनुपात 1000 लड़कों पर 962 लड़कियों का था, जबकि 2011 में यह अनुपात नीचे आकर प्रति 1,000 लड़कों पर 914 लड़कियों का हो गया।
वर्ष 2015 की कैग की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के नवीनतम आंकड़े बाल लिंग अनुपात का 883 तक कम होने का संकेत देते हैं।
2001 के बाद से, सामान्य रुप से भारत और विशेष रुप से उत्तर प्रदेश में शिशु लिंग अनुपात में गिरावट हुई है। यह साफ रुप से संकेत देते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या होना बेरोक-टोक जारी है।
राज्य को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के माध्यम से केंद्र सरकार की ओर से 35 फीसदी यानी 7.09 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं। इस पर कैग रिपोर्ट कहती है कि पिछले पांच वर्षों में प्राप्त राशि में से राज्य ने 54 फीसदी यानी लगभग 3.86 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। यह राशि राज्य के मूल आकलन का मुश्किल से 20 फीसदी है। और इसका इस्तेमाल नहीं किया गया है।
विश्व आर्थिक मंच की जेंडर गैप इंडेक्स में 145 देशों में से भारत का स्थान 108 वां रहा है। महिलाओं की स्थिति के मामले में बिहार और राजस्थान के साथ उत्तर प्रदेश, सबसे खराब भारतीय राज्यों में से है।
साभार: इंडिया स्पेंड