उत्तर प्रदेश में भाजपा की जोरदार जीत ने तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को हैरानी में डाल दिया है। अधिकतर परिणाम रुझानों में भी भाजपा को इतनी जोरदार जीत की भविष्यवाणी नहीं की गई थी। भाजपा की इस भारी जीत के पीछे प्रधान मंत्री मोदी के धुआंधार प्रचार, उनके कामकाज पर भरोसे समेत तमाम कारणों को माना जा रहा है।
यूपी में नरेंद्र मोदी आगे आकर खेले और अंतिम दौर में जिस तरह से उन्होंने प्रचार किया, इससे भाजपा को निर्णायक बढ़त दिलाने में मदद मिली है। खासतौर पर पूर्वांचल में आखिरी दौर में हुए चुनाव में उन्होंने तीन दिन तक काशी में डेरा डाले रखा। यही वजह थी कि वाराणसी समेत आसपास के सभी जिलों में भाजपा को बड़ी जीत मिली है।
अमित शाह ने स्वामी प्रसाद मौर्य और सुखदेव राजभर जैसे पिछड़े नेताओं को अपने साथ जोड़कर यह संकेत दिया कि भाजपा सबको साथ लेकर चल सकती है। खासतौर पर गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलित पर बीजेपी का फोकस था। जिस तरह के नतीजे आए हैं, उससे यह साबित होता है कि भाजपा को इन समुदायों को गोलबंद करने में सफलता मिली है।
भाजपा ने कई जगह कार्यकर्ताओं की नाराजगी मोल ली और बाहर से आए जिताऊ नेताओं पर भी दांव लगाया। कार्यकर्ताओं के विरोध पर कहा था कि हमने कैंडिडेट्स की विश्वसनीयता और उनकी जीतने की क्षमता के आधार पर टिकट बांटे हैं। इसी तर्क को देखते हुए पार्टी ने राजनीतिक परिवार के लोगों को खूब टिकट बांटे। बीजेपी का यह तर्क काम करता भी दिखा है। बाहर से पार्टी में आए अधिकतर नेताओं को बीजेपी के टिकट पर जीत मिली है।
यूपी में चुनाव से पहले जिस समय यादव परिवार में गृहयुद्ध की स्थिति थी, उस वक्त बीजेपी परिवर्तन रैलियों के जरिए पूरे यूपी को मथ रही थी। सुनियोजित प्रचार का फायदा बीजेपी को मिला। उसके बाद चुनाव के दौर में पीएम मोदी समेत बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने पूरे सूबे में धुआंधार प्रचार किया, जिसका फायदा पार्टी को मिला है।
बिहार की तर्ज पर मुकाबला दो गठबधनों के बीच न होने का फायदा भी बीजेपी को मिला। करीब 40% वोट के साथ बीजेपी करीब सवा तीन सौ सीटें हासिल करती दिख रही। वहीं, 23 फीसदी वोट हासिल करने वाली बीएसपी 20 से भी कम सीटों पर सिमटती दिख रही है। कहा जा सकता है कि विपक्षी दलों के बीच वोटों के बंटवारे ने भी बीजेपी की ताकत को बढ़ाने का काम किया है।