मजूरन के मजूरी समय से नहीं मिलत आय। मजूर मजूरी का रूपिया लें खातिर प्रधान अउर विभाग वालेन के चक्कर लगावत हवै। आखिर मा उंई आपन मन मार के रहि जात हवैं।
वइसे तौ या समस्या कइयौ गांवन मा हवै, पै उदाहरन मानिकपुर ब्लाक मा कइयौ गांवन के हवै। जइसे सरहट गांव का पटा पुरवा अउर सुअर गढ़ा गांव। इं गांवन मा मड़ई एक बरस पहिले पौधा लगावै का काम करिन।
उनकर मजूरी एक बरस से अबै तक नहीं मिली। जबैकि नियम मा हवै कि मजूरी एक हफ्ता के भीतर दीन जई? का नियम कागज बस मा लिखा जात हवै?
सच्चाई मा इं नियम काहे नहीं रहत आय? वन विभाग वाले कहत हवै कि बजट आई तौ मजूरी दीन जई। जबै सरकार के सउहैं बजट के समस्या रहत हवै तौ नियम का सोच के बनाये जात हवैं। इनतान के नियम अउर समय से मजूरी न मिलै के कारन मजूरन का विष्वास उठत नजर आवत हवै। सच्चाई या हवै कि मजूरन के मजूरी का भुगतान समय से होय तौ नींक रहै। या तौ सबै कउनौ जानत हवै कि थोइ बहुत समय मजूरी का रुपिया दें मा देर होइ सकत हवै, पै अगर पूर एक-एक बरस लागी तौ या बात सोचै वाली हवै। काहे से कि रुपिया के बिना कसत खर्चा चल सकत हवै।
या जवाबदेही केहिके आय.
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