देश को आजादी मिले छाछठ साल से भी ज्यादा हो चुके हैं। लोकतंत्र यहां की खासियत है, यानी जनता का जनता के लिए जनता द्वारा शासन। लेकिन जनता के बुनियादी अधिकारों को अनदेखा किया जा रहा है। बड़े शहरों से दूर रह रहे लोग कई मायनों में नजरअंदाज किए जा रहे हैं। सरकारी आवास, पानी-बिजली, सड़क, पेंशन, मिड डे मील, राशन, स्वास्थ्य सुविधाओं समेत ढेरों योजनाएं चल रही हैं। इनमें लाखों करोड़ खर्च हो चुके हैं। लेकिन लोगों की स्थिति में थोड़ा बहुत ही फर्क आया है।
अपने बुनियादी हकों की मांगों को लेकर जिलों, कस्बों और गांवों से लोग दिल्ली तक आए। हजारों की भीड़ में लोगों ने अपनी आवाज को एकजुट हो उठाया। यह पहली बार हुआ है कि लोग किसी एक, दो या तीन मांग के लिए नहीं बल्कि एकमुश्त सभी बुनियादी अधिकारों के लिए एकजुट थे।
इसी महीने एक दूसरी रैली भी दिल्ली में निकली। यह पहचान की मांग थी। जेंडर के आधार पर परंपरागत मान्यताओं और समझ से आगे जेंडर को समझने और समाज में उसके स्थापित करने की मांग थी। कानूनी तौर पर इसे मान्यता देने की मांग थी।
एक और घटना जो दिल्ली में इसी महीने घटी – ईसाइयों के धार्मिक स्थल चर्च में आग लग गई या लगाई गई। फिलहाल यह जांच का मुद्दा है। लेकिन जिस तरह से आग लगी और लोगों की बातें सामने आईं हैं उनसे किसी न किसी साजिश का संदेह होता है। लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। लेकिन जब-तब होने वाले सांप्रदायिक दंगे लोकतंत्र की इस भावना को भी ठेस पहुंचाते रहते हैं।
यह कैसा लोकतंत्र, नहीं मिल रहे हमारे अधिकार
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