प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक बयान ने इन दिनों हंगामा मचा रखा है। क्या उन्हें लगता है कि शासन प्रशासन केवल मर्दों के लिए बना है? क्योंकि उन्होंने बांग्लादेश की अपनी यात्रा पर वहां की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बारे में कुछ ऐसा ही कहा। उन्होंने कहा कि औरत होने के बावजूद बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आतंकवाद के प्रति सख्त रवैया अपनाया।
मोदी के अनुसार शेख हसीना ने जो किया वह अजूबा है क्योंकि यह तो मर्द ही कर सकते थे। जिस पद पर वह हैं उस पद का नजरिया अगर इतना तंग और भेदभाव भरा है तो फिर देश की नीतियों पर भी उसका असर जरूर दिखेगा। जेंडर आधारित ऐसा नजरिया कभी भी देश के विकास में औरत और मर्द को बराबर मौके नहीं देगा। चिंताजनक यह भी है कि पारंपरिक सामाजिक सोच अगर प्रधानमंत्री की भी है तो फिर जेंडर के दूसरे आयामों के हकों का क्या होगा? ऐसे लोग जो जन्म से एक जेंडर के हैं मगर वह खुद को अलग जेंडर का महसूस करते हैं। उनका क्या होगा? ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नरेंद्र मोदी इस नजरिए के साथ जेंडर के दो पारंपरिक खांचों की धारणा से अलग हटकर सोच पाएंगे?
कई नेता औरतों के लिए ऐसे ही बयान पहले भी दे चुके हैं। समाजवादी पार्टी के नेता मुलामय सिंह ने तो कहा था कि गल्तियां लड़कों से ही होती हैं। ऐसा उन्होंने बलात्कार के आरोपी लड़कों से सहानुभूति रखते हुए कहा था। लालू यादव ने तो चुनाव प्रचार के दौरान यहां तक कहा था कि वह हेमा मालिनी के गालों जैसी बिहार की सड़कें बनवाएंगे। पुरुष नेताओं का यह नजरिया तो सोचनीय हैै।