2017 के मुंबई दौड़ में ज्योति गावटे अवल नंबर पर आई। उन्होंने रेस को 2:50:53 के टाइम में खत्म किया और ये एक बहुत ही बड़ी सफलता मानी जा सकती है। लेकिन ज्योति खुश नहीं थी।
आपको बता दे कि ज्योति ने ये दौड़ 2011 में भी जीती थी लेकिन उन्होंने जिस इनाम की उम्मीद की थी तब वो उन्हें नहीं मिला था। गरीब परिवार की ज्योति सोच रही थीं कि शायद उनके हुनर को देख कर उनको नौकरी तो मिल ही जाएगी, या फिर उनको ट्रेनिंग के लिए भी सरकार भेजे। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
ज्योति ने भारत का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी रोशन किया है, 2011 में वे बैंगकॉक के मैराथन में भागी थी और उनका अपना मानना है कि सही तरह से पोषण और ट्रेनिंग मिलने पर वे 2020 के टोक्यो ओलिम्पिक्स में भी हिस्सा ले सकती है।
ज्योति की कहानी एक तरह से ऐसे हर खिलाड़ी कि कहानी है, जो सरकारी लापरवाही कि वजह से, आगे नहीं बढ़ पातें। दो बार अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन कर चुकी हैं, फिर भी उन्हें राष्ट्रीय शिविर में जगह नही मिली। यही कारण है कि जहाँ मेहनत है वहां प्रशिक्षण की कमी होने के कारण खिलाड़ी पीछे रह जाते हैं। ज्योति को इन नाकामयाबीयों के बाद भी दिल्ली में होने वाली दौड़ प्रतियोगिता से उम्मीद है।
मैराथन प्रतियोगिताओं की विजेता ज्योति गावटे आखिर क्यों हैं निराश?
पिछला लेख