जदयू सांसद केसी त्यागी ने आधार कार्ड योजना से होने वाले खतरे पर सरकार से सवाल पूछे। पर इन सवालों पर सरकार ने जो जवाब दिए वो संदेह उत्पन्न करते हैं। सरकार ने कहा कि आधार कार्ड योजना सरकारी योजनाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए शुरू की गई है। इससे गरीबों का फायदा होगा। वहीं अदालत कह रही है कि इसे किसी योजना से जोड़ना और अनिवार्य करना गलत है। जबकि, सच्चाई यह है कि कई सालों से सरकार की तरफ से भ्रम फैलाया जा रहा है।
जनता को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि आधार कार्ड बनते ही देश में सरकारी काम आसान हो जाएगा, सारी योजनाएं सफल होने लगेंगी। जो योजना गरीबों तक नहीं पहुंच पाती, वह पहुंचने लगेगी और सभी लोगों को बीज एवं खाद की सब्सिडी मिलने लगेगी। अब सवाल यह है कि क्या आधार कार्ड से जुड़ी बायोमीट्रिक जानकारियां किसी विदेशी कंपनी या एजेंसी के साथ साझा की जाएंगी या नहीं? लेकिन सरकार ने अपने जवाब में इस सवाल को ही गायब कर दिया। देश में लोगों का सारा बायोमीट्रिक डाटा विदेशी कंपनियों को सौंपा जाएगा। हैरानी की बात यह है कि इन कंपनियों में सालों का करार हैं जिसके चलते यह सालों तक डेटा का लेन-देन करेंगी। मतलब यह कि जो डाटा यूआईडी के नाम पर इकट्ठा किया जा रहा है, वह सुरक्षित नहीं है। इसकी कोई गारंटी नहीं है कि इसे किसी और देश को नहीं बेचा जा सकता है और इनका गलत इस्तेमाल भी किया जा सकता है। यूआईडी और एसेंचर कंपनी के बीच हुए समझौते का अनुच्छेद 15.1 कहता है कि इस अनुबंध के तहत एसेंचर सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड की टीम भारत के किसी भी निवासी की व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग कर सकती है। और यह इसकी सबसे ज्यादा खतरनाक बात है।
फरवरी, 2014 में पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी ऑन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की साइबर सिक्योरिटी पर एक रिपोर्ट आई थी और उसमें यह चेतावनी दी गई कि आधार कार्ड योजना न सिर्फ राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता है, बल्कि नागरिकों की संप्रभुता एवं निजता के अधिकार पर हमला भी है। क्योंकि, जिस तरह से लोगों का बायोमीट्रिक डाटा क्लाउड टेक्नोलॉजी के तहत स्टोर किया जा रहा है, उस पर देश की सरकार का कोई अधिकार नहीं है। कोई उन्हें हैक करके हासिल कर लेता है, तो उसके खिलाफ भारत कुछ करने की स्थिति में नहीं होगा। पर उनका कोई अधिकार नहीं रह जाएगा।
मूर्ख बनाने का डिजिटल तरीका है ‘आधार कार्ड’
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