मुज़फ्फरनगर । मुज़फ्फरनगर में हाल में प्रशासन ने कुछ दावे किए जबकि ज़मीनी हकीकत इन दावों से अलग है। दंगों के बाद यहां बने कैंपों को हटाने के सवाल पर प्रशासन ने कहा ’कैंप हमने नहीं हटवाए।’ डी.एम. कौशल राज शर्मा ने कहा कि लोगों को मुआवज़ा मिल गया था, इसलिए वे खुद गांवों में बसना चाहते थे। कैंपों को उखाड़ने वाले बुलडोजरों का किराया सरकारी खाते से नहीं गया है। लोग कैंप खाली कर चुके थे, इसलिए गांव के लोगों ने मिट्टी बराबर करने के लिए बुलडोजर बुलाए थे। दंगों के बाद यहां काम कर रही जेसीआई टीम और प्रशासन के बीच हुई बैठक में यह बात डी.एम. ने रखी।
इस बीच शामली जिले के कांधला गांव में 25 जनवरी को चार महीने की एक बच्ची की मौत ठंड से हो गई। दंगों के बाद ये लोग राहत कैंप में रह रहे थे। लेकिन दिसंबर के आखिर में इन्हें कैंप से हटने को कहा गया था। लोई कैंप और शाहपुर कैंप करीब-करीब उखाड़े जा चुके हैं। 24 जनवरी को मलकपुरा कैंप में भी एक पांच महीने की बच्ची की मौत हो गई। बैठक में प्रशासन का यह भी दावा था कि सभी को मेडिकल सुविधाएं मिल रहीं हैं। मुज़फ्फरनगर के बी.एस.ए ने कहा कि दंगों का सामना करने वाले परिवारों के बच्चों का दाखिला करवा दिया गया है। जबकि कैंपों वाले गांव के स्कूलों में दाखिला देने की जगह अगले साल पढ़ाई करने की बात कह रहे हैं।