जिला वाराणसी, नगर क्षेत्र पाण्डेयपुर नई बस्ती। इहां के जीरा देवी अठ्ठारह साल से अकेले काम करके आपन आउर अपने परिवार के खर्चा चलावत हईन।
जीरा देवी बतावलीन कि हमरे आदमी के मरले अठ्ठारह साल हो गएल हव। जब से हमार आदमी मरल हयन तब से हम आपन आउर अपने परिवार के खर्चा चलावत हई। पहिले हम सब्जी के दुकान लगावत रहे। लेकिन हमके सब्जी में कुछ समझ में नाहीं आवतरहल। रोज सब्जी मण्डी भी जायके होत रहल। तब हमरे घर के एक लोग हमसे कहलीन कि मुसम्मी के रस के दुकान लगा ला। तब ही से हम ठेला पर मुसम्मी के रस बेचीला। खाए भर के निकल जाला।
जीरा बतावलीन कि हमके तीन लइकन हयन। एक लइकी के शादी कर देहले हई। दू लोग बचल हयन। हमार बच्चन सरकारी स्कूल में पढ़ाई करलन। हम आपन दिन भर मशीन से जूस गार गार के इ कालोनी से उ कालोनी आउर इ गावं से उ गावं बेचल करीला। हमार एक लइकी शादी करे लायक हव लेकिन कउनो सहारा नाहीं हव। हमके चिन्ता लगल हव। हमरे आदमी के मरले के एतना दिन बाइ भी हमके अभहीं तक विधवा पेंशन नाहीं मिलत हव। कई बार सभासद से कहली लेकिन कउनों सुनवाई नाहीं भयल।
सभासद बालामती के लइका राजेश यादव के कहब हव कि ए साल में हम लगभग पचीस विधवा के फार्म भरले हई। लेकिन जीरा हमरे पास नाहीं अइलिन ना तो एको बार हमसे कहलीन। प्यासल कुआं के पारस जाला, कुंआ प्यासल के पास नाहीं जात।
मुसम्मी के जूस हव सहारा
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