लखनऊ। शिक्षा का अधिकार कानून लागू हुए पांच साल होने के बाद भी यह कानून बहुत कम बच्चों को ही स्कूल तक ला पाया है। यह कानून 26 अगस्त 2009 में बना था। एक अप्रैल 2010 में यह लागू हुआ था।
कानून से मिले अधिकार का मूल्यांकन करने के लिए स्टेट कलेक्टिव फॉर राइट टू एजूकेसन यानी कई संस्थाओं को मिलाकर बनी संस्था ने प्रेस कांफ्रेंस की। इसमें राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य नाहिद लारी खान, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की पूर्व सदस्य वीणा गुप्ता भी मौजूद थीं। नाहिद लारी खान ने बताया कि अभी प्रदेश में शिक्षकों के तीन लाख, छह हजार, छह सौ अस्सी पद खाली हैं। कोशिश करेंगे की शिक्षकों की भर्ती हो।
शिक्षा के हक के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्त्ता ने बताया कि निजी स्कूलों में पच्चीस प्रतिशत सीटों में गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का नियम है। प्रदेश में मौजूद सारे स्कूलों की बात करें तो यहां पर साढ़े छह लाख बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए। लेकिन सिर्फ साठ बच्चों का ही नामांकन हुआ है।
प्रदेश का कोई भी निजी स्कूल पच्चीस प्रतिशत बच्चों को मुफ्त शिक्षा नहीं दे रहा है। बच्चों से मनमानी फीस वसूली जा रही है। प्रशासन भी अपनी आंखे बंद किए है।
मुफ्त शिक्षा का अधिकार कब मिलेगा पूरा?
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