योगी आदित्यनाथ सरकार की ओर से मुजफ्फरनगर दंगे के आरोपियों पर केस वापसी की प्रकिया ने पीड़ित परिवारों को फिर से दुखी कर दिया है।
दंगा पीड़ितों में दोनों समुदायों के लोग शामिल हैं। मुजफ्फरनगर दंगों के पांच साल बाद भी इसका दर्द पीड़ितों के चेहरे पर साफ देखा जा सकता है। शामली में झुग्गी झोपड़ियों में रहने को मजबूर पीड़ितों ने दंगों में जहां अपनों को खोया वहीं अपने घरों से भी बेघर होना पड़ा।
मुजफ्फरनगर और शामली में रहने वाले पीड़ित इस फैसले से आहत है। उनका कहना है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाना चाहिए, उन्हें हर हाल में कानून के अंजाम तक पहुंचाया जाए। हां, अगर कहीं झूठे मुकदमे हैं तो सरकार उन्हें जांच के बाद वापस ले सकती है।
इन पीड़ितों का कहना है कि हत्या के दोषियों को फांसी दी जानी चाहिए।
एक पीड़ित का कहना है, ‘हमारे घर जला दिए गए हमें झुग्गी झोपड़ियों में बसेरा बनाना पड़ा। बीजेपी सरकार आरोपियों पर से मुकदमे वापस लेने की बात कह रही है। यह फैसला हमें किसी सूरत में मंजूर नहीं। आरोपियों को जेल से बाहर नहीं आने देना चाहिए।’
काकड़ा गांव के कुछ लोग उस दिन नगला मंदौड़ पंचायत से लौट रहे थे। दंगा भड़कने के बाद उसी समय मंसूरपुर थाना क्षेत्र के पुरबालियान गांव से उनकी ट्रैक्टर ट्रॉलियों पर पथराव के बाद हमला कर दिया गया। इस हमले में दर्जनों लोग घायल हो गए। काकड़ा गांव के ही रहने वाले 65 वर्षीय राजबीर, 55 वर्षीय महेंद्र और 26 वर्षीय विकास की मौत हो गई। काकड़ा में रहने वाले दंगा पीड़ितों का कहना है कि कि दोषियों को उनके किए की सजा जरूर मिलनी चाहिए। अगर कहीं झूठे मुकदमे हैं तो सरकार उन्हें वापस ले सकती है।
बता दें कि योगी आदित्यनाथ सरकार ने मुजफ्फरनगर और शामली दंगों से जुड़े 131 केस वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। वापस किए जाने वाले इन मुकदमों में हत्या के 13 और हत्या के प्रयास के 11 मामले शामिल हैं।
योगी सरकार के कानून मंत्री बृजेश पाठक का कहना है कि जो मामले राजनीतिक दुर्भावना के तहत दर्ज किए गए थे, सरकार उन्हें वापस लेगी। समाजवादी पार्टी इस मुद्दे पर योगी सरकार पर जम कर निशाना साध रही है।
सूत्रों के मुताबिक 5 फरवरी को सांसद संजीव बालियान और विधायक उमेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले थे और उन्होंने 161 लोगों की लिस्ट उन्हें सौंपी थी, जिनके केस वापस लेने की मांग की गई थी।